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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी हैं और काता हुआ सूत उनसे माँग लेते हैं।...वे लोग चरखा माँगते हैं और सूत भेजनेका वादा करते हैं। ऐसे-ऐसे लोग भी जो चरखेका मजाक उड़ाते थे उसके कायल होते जा रहे हैं। . . .

मैंने पत्रंको संक्षिप्त कर लिया है और उसकी अंग्रेजी भी सुधार दी है। मैं सभी कार्यकर्त्तओंका ध्यान इसकी ओर दिलाता हूँ। इसमें कोई सन्देह नहीं कि कोरी बातोंकी अपेक्षा काम करके दिखा देना कहीं ज्यादा अच्छा है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १२-२-१९२५

६२. एक क्रान्तिकारीका बचाव

एक सज्जनने, जिन्होंने अपना नाम दिया है लेकिन पता नहीं दिया, एक पत्र भेजा है, जिसे वह 'खुली चिट्ठी' कहते हैं। मैंने बेलगाँव कांग्रेसके अपने भाषणमें [१] क्रान्तिकारी आन्दोलनके सम्बन्धमें जो बातें कही थीं, इस पत्रमें उन्हींका उत्तर दिया गया है। पत्र देश-प्रेम, उत्साह और आत्मत्यागके भावसे ओत-प्रोत है। इसके अलावा यह उस अन्यायकी अनुभूतिसे लिखा गया है जो कहा जाता है, मैने क्रान्तिकारियोंके प्रति किया है। इसलिए मैं इस गुमनाम पत्रको प्रसन्नतापूर्वक छापता हूँ। लेखकका पता नहीं दिया गया है। पत्रका पूरा पाठ ज्योंका-त्यों नीचे देता हूँ: [२]

मैं देशके राजनीतिक जीवनसे कब और कैसे निवृत्त होऊँगा, इस सम्बन्धमें मैंने किसीको कोई वचन नहीं दिया है। [३] लेकिन मैंने यह अवश्य कहा है और अब भी कहता हूँ कि यदि मैं यह देखूँगा कि भारत मेरे सन्देशको ग्रहण नहीं करता और रक्तमय क्रान्ति चाहता है तो मैं निश्चय ही हट जाऊँगा। उस आन्दोलनमें मैं कोई भाग नहीं लूँगा, क्योंकि मैं भारतके लिए या संसारके लिए, जो एक ही चीज है, उसे उपयोगी नहीं मानता।

मैं अवश्य ही यह विश्वास करता हूँ कि देशने असहयोगके आह्वानका आश्चर्यजनक उत्तर दिया; लेकिन मैं यह भी मानता हूँ कि असहयोग जिस हदतक किया गया उसकी तुलनामें सफलता अधिक मिली है। जन-समुदायमें जो आश्चर्यजनक जागृति हुई है वह इस तथ्यका जीता-जागता प्रमाण है।

मैं यह भी विश्वास करता हूँ कि देशने बहुत अधिक आत्मसंयम बरता है, लेकिन मुझे अपना यह मत भी दोहरा देना चाहिए कि देशमें जिस स्तरकी अहिंसाका पालन किया गया वह अपेक्षित स्तरसे बहुत नीचे दर्जेकी थी।

मेरा विश्वास यह नहीं है कि 'मेरा तत्त्वज्ञान' टॉल्स्टॉय और बुद्धके विचारोंका बेतुका मिश्रण है। वह क्या है यह मैं नहीं जानता; हाँ, इतना कह सकता हूँ

 
  1. देखिए खण्ड २५, पृष्ठ ५०४-२५।
  2. यहाँ नहीं दिया गया है। गांधीजीके उत्तरसे पत्रके विषयका अनुमान हो जाता है।
  3. देखिए खण्ड २१, पृष्ठ ५८५-८८।