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एक क्रान्तिकारीका बचाव

कि वह वही हैं जिसे मैं सच समझता हूँ। उससे मुझे सहारा मिलता है। मैं टॉल्स्टॉय और बुद्धका बहुत ऋणी हूँ। किसी-न-किसी तरह अब भी मेरा खयाल है कि 'मेरे तत्त्वज्ञान' में 'गीता' की शिक्षाओंका सच्चा भाव आ जाता है। सम्भव है मेरा खयाल बिलकुल गलत हो; किन्तु उसके गलत होनेसे मेरी या किसी अन्य व्यक्तिकी कोई हानि नहीं होती। यदि मैं विशुद्ध सत्यका समर्थक हूँ तो मेरी प्रेरणाका स्रोत क्या है, यह विचार व्यर्थ है।

जो तत्त्वज्ञान मेरा कहा जाता है उसकी कसौटी उसके गणावगणके आधारपर होनी चाहिए। मैं मानता हूँ कि संसार सशस्त्र विद्रोहोंसे त्रस्त हो गया है। मैं यह भी मानता हूँ कि दूसरे देशोंमें चाहे जो-कुछ हुआ हो, रक्तमय क्रान्ति भारतमें कभी सफल न होगी। जन-समुदाय उसका साथ नहीं देगा। जिस आन्दोलनमें जन-समुदाय कोई सक्रिय भाग नहीं लेता उससे कोई लाभ नहीं पहुँच सकता। सफल रक्तमय क्रान्तिसे जन-समुदायके कष्ट बढ़ ही सकते हैं। क्योंकि जनताके नजदीक तो इसके बाद भी शासन विदेशी शासन जैसा ही होगा। मैं जिस अहिंसाको शिक्षा देता हूँ वह अत्यन्त शक्तिशाली लोगोंकी सक्रिय अहिंसा है। लेकिन अत्यन्त कमजोर लोग भी उसमें हिस्सा ले सकते हैं; उससे वे अधिक कमजोर नहीं बनेंगे। वे उसमें हिस्सा लेनेसे अधिक शक्तिशाली ही हो सकते हैं। जन-समुदाय जितना साहसी आज है उतना पहले कभी न था। अहिंसात्मक आन्दोलनमें यह आवश्यक होता है कि उसका संगठन सामूहिक पैमानेपर किया जाये। इसलिए उससे तामसिकता या अन्धकार या गतिहीनता उत्पन्न नहीं हो सकती। उससे राष्ट्रीय जीवनकी गति तेज होती है। वह आन्दोलन खामोशीके साथ, करीब-करीब अदृश्य रूपमें अब भी जारी है; किन्तु वह जारी है, इसमें सन्देह नहीं।

क्रान्तिकारियोंने वीरता दिखाई है और त्याग किया है इससे मैं इनकार नहीं करता। लेकिन किसी बुरे उद्देश्यसे वीरता दिखाना और त्याग करना अत्यन्त उपयोगी शक्तिको बरबाद करना और एक बुरे उद्देश्यके निमित्त गलत ढंगसे किये गये त्याग और वीरताकी चमक दिखाकर लोगोंका ध्यान एक अच्छे उद्देश्यकी ओरसे हटाकर उसे नुकसान पहुँचाना है।

मुझे वीर और आत्मत्यागी क्रान्तिकारीके सामने गर्वके साथ खड़े होने में कोई हिचकिचाहट नहीं होती, क्योंकि मैं अहिंसक लोगोंका उतना ही वीरत्व और त्याग मकाबले में खड़ा कर दे सकता हूँ, जिसमें खासियत यह होगी कि किसी निर्दोष व्यक्तिके रक्तका एक धब्बा भी उसपर नहीं होगा। एक ही निर्दोष मनुष्यका आत्मबलिदान उन लाखों लोगोंके बलिदानसे लाखों गुना शक्तिशाली होता है, जो दूसरोंको मारते हुए मरते हैं। संसारमें जिस उद्दण्डतापूर्ण अत्याचारकी आजतक कल्पना हो पाई है, ऐसे किसी अत्याचारका मुँहतोड़ जवाब है---निर्दोष लोगोंका स्वेच्छा-प्रेरित बलिदान।

स्वराज्यके मार्गमें तीन बड़ी बाधाएँ हैं---चरखेका अपर्याप्त प्रचार, हिन्दुओं और मुसलमानोंमें फूट तथा दलित वर्गोपर अमानुषिक सामाजिक प्रतिबन्ध । मैं इन तीनोंकी ओर क्रान्तिकारियोंका ध्यान आकर्षित करता हूँ। यह काम बड़े धीरजसे करनेका है; मैं उनसे कहता हूँ कि वे इसे पूरा करने में धैर्यपूर्वक उचित सहयोग