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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्राप्त करनेके लिए हर किस्मके उपायोंसे काम लेना--हर तरहकी चीजें खाना, कुश्ती आदि लड़ना, गोमांस खाना, इत्यादि। मेरे लड़कपनमें मेरा एक मित्र मुझसे कहा करता था कि मांसाहार हमें अवश्य करना चाहिए, नहीं तो हम अंग्रेजोंकी तरह हट्टे-कट्टे नहीं हो सकेंगे। कवि नर्मदाशंकरने भी अपनी एक कवितामें ऐसी ही बात कही है। 'अंग्रेज राज्य कर रहे हैं और भारतीय उनकी गुलामी कर रहे है'; 'वह तो पूरे पाँच हाथ ऊँचा है' आदि पंक्तियोंमें यही भाव है। कवि नर्मदाशंकरने गुजरातपर बहुत उपकार किया है। किन्तु इनका जीवनकाल दो पर्वो में विभाजित था। एक स्वेच्छाचारका काल और दूसरा संयमका। यह कविता स्वेच्छाचार-कालको है। जापानको भी जब दूसरे देशके साथ मुकाबला करनेका अवसर आया तब वहाँ गोमांस भक्षणको स्थान मिला। सो यदि आसुरी प्रकारसे शरीरको तैयार करनेकी इच्छा हो तो इन चीजोंका सेवन करना होगा।

परन्तु यदि दैवी साधनसे शरीर तैयार करना हो तो ब्रह्मचर्य ही उसका एक उपाय है। जब मुझे कोई नैष्ठिक ब्रह्मचारी कहता है तब मुझे अपनेपर दया आती है। इस अभिनन्दनपत्रमें मुझे नैष्ठिक ब्रह्मचारी कहा गया है। सो मुझे कहना चाहिए कि जिन्होंने इस अभिनन्दनपत्रका मजमून तैयार किया है उन्हें नहीं मालूम कि नैष्ठिक ब्रह्मचर्य किसे कहते हैं। जिसके बाल-बच्चे हुए हैं उसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी कैसे कह सकते हैं? नैष्ठिक ब्रह्मचारीको न तो कभी बुखार आता है, न कभी सिर-दर्द होता है, न कभी खाँसी होती है, न अपेंडिसाइटिस होता है। डाक्टर लोग कहते हैं कि नारंगीका बीज आंतमें रह जानेसे भी अपेंडिसाइटिस होता है। परन्तु जिसका शरीर स्वच्छ और निरोगी होता है उसमें ये बीज टिक ही नहीं सकते। जब आँतें शिथिल पड़ जाती हैं, तब वे ऐसी चीजोंको अपने-आप बाहर नहीं निकाल पाती हैं। मेरी भी आँतें शिथिल हो गई होंगी। इसीसे मैं ऐसी कोई चीज हजम नहीं कर सका होऊँगा। बच्चे ऐसी अनेक चीजें खा जाते हैं। माता इसका कहाँ ध्यान रखती है? पर उसकी आँतमें ही इतनी स्वाभाविक शक्ति होती है। इसीलिए मैं चाहता हूँ कि मुझपर नैष्ठिक ब्रह्मचर्यके पालनका आरोप करके कोई मिथ्याचारी न बने। नैष्ठिक ब्रह्मचर्यका तेज तो मुझसे अनेक गुना अधिक होना चाहिए। मैं आदर्श ब्रह्मचारी नहीं है। हाँ, यह सच है कि मैं वैसा बनना चाहता हूँ। मैंने तो आपके सामने अपने कुछ अनभुवमात्र ही पेश किये हैं, और इनसे ब्रह्मचर्यकी मर्यादा प्रकट होती है। ब्रह्माचारी रहनेका अर्थ यह नहीं कि मैं किसी स्त्रीको स्पर्श न करूँ, अपनी बहनका स्पर्शन कीं। पर ब्रह्मचारी होनेका अर्थ यह है कि स्त्रीका स्पर्श करनेसे किसी प्रकारका विकार उसी तरह उत्पन्न न हो जिस तरह कागजको स्पर्श करनेसे नहीं होता। मेरी बहन बीमार हो और उसकी सेवा करते हए, उसका स्पर्श करते हए ब्रह्मचर्यके कारण मुझे हिचकना पड़े तो वह ब्रह्मचर्य तीन कौड़ीका है। जिस निर्विकार दशाका अनुभव

१. अंग्रेजी राज्य करे, देशी रहे दवाअी

देशी रहे दवाअी, जोने बेना शरीर भाअी

पेलो पाँच हाथ पूरो, पूरो पाचसेंने।