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भाषण: बोरसदमें

हम मृत शरीरको स्पर्श करके कर सकते हैं उसीका अनुभव जब हम किसी सुन्दर युवतीका स्पर्श करके कर सकें तभी हम ब्रह्मचारी हैं। यदि आप यह चाहते हों कि बालक ऐसे ब्रह्मचर्यको प्राप्त करे, तो इसका अभ्यासक्रम आप नहीं बना सकते, पर मुझ-जैसा ब्रह्मचारी, फिर वह अधूरा ही क्यों न हो, ही बना सकता है।

ब्रह्मचारी स्वाभाविक संन्यासी होता है। ब्रह्मचार्याश्रम संन्यासाश्रमसे भी बढ़कर है। पर उसे हमने गिरा दिया है। इससे हमारा गृहस्थाश्रम भी बिगड़ा और वानप्रस्थाश्रम भी। संन्यासका तो नाम भी नहीं रह गया। ऐसी दीन हो गई है हमारी अवस्था।

ऊपर जो आसुरी मार्ग बताया गया है उसका अनुकरण करके तो आप पाँच सौ वर्षोतक भी पठानोंका मुकाबला नहीं कर सकेंगे। दैवी मार्गका अनुसरण किया जाये तो आज ही उनका मुकाबला हो सकता है। क्योंकि दैवी साधनसे आवश्यक मानसिक परिवर्तन एक क्षणमें हो सकता है। पर शारीरिक परिवर्तनमें युग बीत जाते हैं। इस दैवी मार्गका अनुसरण तभी सम्भव होगा जब हमारे पल्ले पूर्वजन्मका पुण्य होगा, और माता-पिता हमारे लिए उचित वातावरण पैदा करेंगे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १-३-१९२५

६४. भाषण: बोरसदमें

१२ फरवरी, १९२५

ईश्वरीय संयोग तो देखिए। मुझे किसलिए आना था और मैं किस लिए आया हूँ? काशीभाईने [१] निर्णय किया है कि वे डाह्याभाई और यशोदाके विवाहमें कोई अनावश्यक खर्च नहीं करेंगे। इससे सम्बन्धीगण रुष्ट हो गये हैं। मैं धनी लोगोंको चेतावनी देता हूँ कि जिनके पास पैसा फालतू पड़ा हो और जो उसे विवाहमें खर्च करने जा रहे हों वे उसे मेरे पास भेज दें। मैं उसका सदुपयोग करूँगा। आडम्बरमें किया गया व्यय उचित नहीं कहा जा सकता। हम उलटे रास्ते चल रहे हैं। इसका फल यह हुआ है कि पाटीदार जातिमें लड़कीका बाप होना असह्य रूपसे कष्टप्रद हो गया है। जब काशीभाईने कहा कि उन्हें किसी तरहका खर्च नहीं करना है तो हम सब उनसे सहमत हो गये। मैं इस बारेमें आपकी सम्मति भी चाहता हूँ। आप भी अपने मनमें प्रभुसे प्रार्थना करें कि वह आपको इस प्रकारका संस्कार, ऐसी ही सादगीसे और धर्मविधिसे करनेकी शक्ति दे।

आपने जो मानपत्र दिया है उसके लिए आभार माननेकी आवश्यकता तो है नहीं। इसके लिए आभार माननेका प्रश्न ही नहीं उठता। आपने मानपत्रमें खादी और चरखेकी बात कही है। यदि खादीमें दैवी शक्ति भरी है और चरखेमें स्वराज्य

 
  1. डाह्याभाईके श्वसुर।