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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दिलानेकी शक्ति है और वह सच्चा सुदर्शन चक्र है तो आप सबको खादी अपना लेनी थी; अन्यथा इस प्रकार मानपत्र देना और उसमें खादी और चरखेकी प्रशंसा लिखना और लड़कियोंसे उसके गीत गवाना व्यर्थ है।

इस सभामें अन्त्यज पीछे क्यों बैठे हैं? मैं तो इनकी पूजा करता हूँ। मैं अपने आपको अन्त्यज कहलानेमें गर्वका अनुभव करता हूँ। मैं अनेक बार कह चुका हूँ कि यदि मुझे दूसरा जन्म लेना पड़े तो मैं अन्त्यजके घरमें लूँ। मैं इस समय अन्त्यजोंकी सेवा नहीं कर रहा हूँ; अपने पापका प्रायश्चित्त कर रहा हूँ; आत्मशुद्धि कर रहा हूँ। मैं हिन्दू समाजसे पूछता हूँ कि क्या आप अन्त्यजोंकी भाँति मुझे भी त्यागना चाहते हैं? मैं इस समय अन्त्यजेतर होनेपर भी यह नहीं कह सकता कि मैं नीतिसम्बन्धी समस्त नियमोंका पालन मन, वाणी और कायासे करता हूँ; किन्तु प्रभुसे मेरी प्रार्थना है कि यदि मेरा दूसरा जन्म हो तो मैं पूर्णपुरुषके रूपमें जन्म लूँ और सो भी अन्त्यज परिवारमें। इनको पीछे बिठाना क्षात्रधर्म नहीं है। पाटीदार जाति तो वीर है। इसमें गुण बहुत हैं। किन्तु कुछ दोष भी हैं। किन्तु संसारमें ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जो सर्वथा गुणरहित अथवा सर्वथा दोषरहित हो। हममें से कोई भी पूर्ण पुरुषोत्तम नहीं है। इस कलि-कालमें यह असम्भव है। इसलिए अन्त्यज नीचे हैं, यह बात मेरा मन स्वीकार नहीं करता। इसलिए इनके साथ रहकर अस्पृश्य बनना आपके साथ रहकर स्पृश्य बननेसे बहुत अच्छा है। मुझे तो प्रभुके दरबारमें माफी माँगनी है। ईश्वर मुझे कहेगा, "यदि तूने इन लोगोंको अस्पृश्य माना हो तो ये लोग तुझे थप्पड़ मारेंगे, क्योंकि तूने अपने भाइयोंको पशु मानकर पाप किया है।" क्षत्रिय पीछे पाँव नहीं हटाते। अन्त्यजोंको पीछे रखना पीछे पाँव हटाना है। मैं आपसे कहता हूँ कि इनको पीछे बिठाकर आप अधर्म न करें। मैं ऐसा इसलिए कहता हूँ कि इस अधर्मको छिपानेका प्रयत्न किया गया है।

पाटीदार निम्न जातियोंपर अत्याचार करते हैं, उनको मारते-पीटते हैं और उनसे बगार कराते हैं। मैं जानता हूँ कि यह बात सच है। आप ऐसे कामसे डरें। यदि आप ऐसे कामोंसे नहीं डरेंगे तो आपकी वीरताका लोप हो जायेगा। जो सुखी है, उसे सबको सुखी करनेका प्रयत्न करना चाहिए। स्वयं दुःख सहकर दूसरोंको सुखी बनाना ही धर्म है। स्वयं सुखी रहकर हम दूसरोंको दुःखी करें यह तो आसुरी वृत्ति हुई। मुझे आपका मानपत्र नहीं चाहिए। मैं तो यह चाहता हूँ कि आप अन्त्यज भाइयोंको सुखी करें और स्वयं भी सुखी हों।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ७