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६५. तार: प्रभाशंकर पट्टणीको

पेटलाद
१३ फरवरी, १९२५

सर प्रभाशंकर
भावनगर

आपका पत्र मिला। राजकोटमें इतवारसे बुधवारतक। बादका कार्यक्रम राजकोटमें पहुँचकर तय होगा। आज रात आश्रम पहुँच रहा हूँ।

गांधी

अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ३१९२) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य: महेश पट्टणी

६६. भाषण: पालेजमें

१३ फरवरी, १९२५

लड़ाईके अन्तमें हममें निडरता आनी चाहिए और रचनात्मक कार्यके अन्तमें योजना-शक्ति और कार्य-शक्ति। यदि हममें योजना-शक्ति और कार्य-शक्ति न आये तो हम राज्य नहीं चला सकते। यदि हम अहिंसासे राज्य प्राप्त करें तो वह सेवावृत्तिसे ही कायम रखा जा सकता है। किन्तु यदि हम सत्ता प्राप्त करने के उद्देश्यसे राज्य लेंगे तो वह केवल हिंसासे ही टिकेगा। उचित यह है कि हम अहिंसाकी शक्तिको पुष्ट करें और सत्ताके बलको त्यागें। जबतक हममें मिलकर रहनेकी शक्ति नहीं आती तबतक अहिंसासे स्वराज्य प्राप्त करना असम्भव है। मैंने इसीलिए लोगोंके सम्मख विविध कार्यक्रम रखा है।

धर्मके नामपर हम किसी भी कार्यमें मनचाही कर सकते हैं; किन्तु जब हमें यह मालूम हो जाये कि यह तो अधर्म है, तब हम वैसा करते नहीं रह सकते। मेरी दृष्टिमें तो अस्पृश्यता दासताकी अपेक्षा भी बड़ा अधर्म है। जब यहाँ अस्पृश्यता निवारणका आन्दोलन चला था तब उसमें ईसाइयों आदिके भाग लेनेका सुझाव भी आया था। किन्तु मैंने उसपर आपत्ति की थी। वाइकोममें अस्पृश्यता निवारणके कार्यमें जॉर्ज जोजेफ-जैसे शुद्ध-हृदय मनुष्य भाग लेना चाहते थे; किन्तु मैंने उनको अनुमति नहीं दी। [१] यदि हम दुनिया-भरसे मदद लेने जायें तो हमारी जिम्मेदारी बढ़ जाती है।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ७
 
  1. देखिए खण्ड २३, पृष्ठ ४१६-१७।