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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ऐसा ही चाहिए

हल्याल कर्नाटकका एक कस्बा है। वहाँकी ताल्लुका कमेटीके मन्त्रीने मुझे यह पत्र लिखा है:[१]

यह नगरपालिका धन्यवादकी पात्री है। यदि वह पत्रमें उल्लिखित कार्योके अतिरिक्त नगरकी सफाई भली-भाँति करवाती हो, वहाँ तालाब साफ रखा जाता हो, उसमें पशु पानी पीते और लोटते न हों और उसमें स्त्री-पुरुष नहाते-धोते न हों, और बच्चोंको अच्छा और सस्ता दूध दिया जाता हो तो यह नगरपालिका आदर्श समझी जायेगी। यदि अन्य सब नगरपालिकाएँ इस नगरपालिकाका अनुकरण करें तो यह स्पष्ट है कि हमारी बहुतसी समस्याएँ हल हो जायें और हमारा जन-जीवन बहुत उन्नत हो जाये।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १५-२-१९२५

६९. भाषण: राजकोटमें [२]

[१५ फरवरी, १९२५][३]

आज सुबह दरबारगढ़में प्रवेश करते समय मुझे बचपनकी एक पावन घटनाका स्मरण हो आया। लीलाधरभाईसे उसके बारेमें बात कर ही रहा था कि हमारी मोटर इस स्थानपर आकर रुक गई। यह पावन स्मरण मैं आपको सुना देना चाहता हूँ। भूतपूर्व ठाकुर साहबके यहाँसे कुछ लोग कानपुर और धरमपुर जा रहे थे। मेरे पिताजी ऐसे मौकोंपर अपने बच्चोंको आगे-आगे नहीं करते थे। आज सोचता हूँ तो लगता है, वह ठीक ही था। इससे हम दोनों भाइयोंने कुछ भी नहीं खोया। मेरी माँकी प्रवृत्ति दूसरी थी। वह चाहती थी कि हम लोग जायें। उसके मनमें धनका लोभ था और कीर्ति तो स्त्री ही है, वह नारीका वरण नहीं कर सकती तिसपर भी वह कीर्तिकी लोभी थी। इस अवसरपर उसने हम दोनोंको बुलाकर कहा भी कि ठाकुर साहब सज्जन पुरुष हैं। उनके पास जाकर रो पड़ोगे तो वे तुम्हें भी भेज देंगे। दल तो चला गया था। मेरी माँ चाहती थी कि हम लोग धरमपुर जायें क्योंकि वहाँसे विदाईमें ज्यादा पैसा मिल सकता था। इसलिए हम दोनों माँकी सीख मानकर ठाकुर साहबके पास गये। इस दरबारगढ़को देखकर मुझे पिछली बातें याद हो आई। यह भी याद हो आया कि मैं कहाँ उनके पास जाकर खड़ा हुआ था। हम दोनों ठाकुर साहबके पास जाकर रोने लगे। उन्होंने मेरे पिताजीसे पूछा, "गांधीजी, बच्चे

 
  1. पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है। इसमें मन्त्रीने विस्तारसे बताया था कि वहाँ की नगरपालिकाने, जिसमें राष्ट्रवादियोंका बहुमत था, रचनात्मक कार्यके सम्बन्धमें क्या-कुछ किया है।
  2. प्रजा प्रतिनिधि मण्डलकी ओरसे दिये गये अभिनन्दन-पत्रके उत्तरमें।
  3. २२-२-१९२५ के नवजीवनके अनुसार भाषण इस तारीखको दिया गया था।