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भाषण: राजकोटमें

क्यों रो रहे है?" पिताजीने हम दोनोंकी ओर आँखें तरेरीं। उनमें विनय तो थी पर कभी-कभी ठाकुर साहबकी भूल देखते तो उनपर ही आँखें तरेर देते। हम डर गये। इसपर ठाकुर साहब बोले, "तुम्हें जो कहना हो बेधड़क कहो।" हमने कहा कि हम धरमपुर जाना चाहते हैं। ठाकुर साहबने कहा, "लोग तो चले गये हैं; अब तो तुम कानपुर ही जा सकते हो।" हम दोनों भाइयोंने रोते-रोते अपना कहना करवा लिया। मैं आज भी रोकर अपनी बात मनवा लेना चाहता हूँ। यहाँ अभी शास्त्रीजीने मुझे श्लोकबद्ध आशीर्वाद देते हुए यह कहा कि कीर्ति तो कुँवारी है। उसे अभी तक योग्य वर मिला ही नहीं। और उन्होंने कामना की कि वह मुझे वरण करे। कीर्ति कुँवारी है तो वह वैसी ही बनी रहे। मुझे कीर्तिकी चाह नहीं है। मैं तो दूसरी ही दो बातें चाहता हूँ और उनके लिए मुझे रोना ही पड़ेगा। अभिनन्दनपत्रमें मेरी बहुत स्तुति की गई है। श्रीमान् ठाकुर साहबने भी बहुत-कुछ कहा है। पर इससे मैं धोखेमें नहीं आ सकता। मैं यह नहीं मान लूँगा कि मैं इन सबके लायक हूँ। ठाकुर साहबने मुझे अपनी दाहिनी तरफ बैठाया और मानपत्र दिया--पर इससे मैं यह नहीं मान सकता कि मैं राजा हो गया। मैं राजा नहीं होना चाहता। मैं तो रैयत हूँ और रैयत ही रहना चाहता हूँ। हाँ, ठाकुर साहबने जो विनय प्रदर्शित की है उसे मैं भी अपनाऊँगा। मैं अपनी मर्यादा नहीं छोड़ूँगा और मूर्ख नहीं बनूँगा। मैं इस प्रकारके मानपत्रमें गर्व न मानकर यथासम्भव विनयशील ही बना रहूँगा।

अभिनन्दनपत्रके लिए आभार मानते हुए भी मुझे यह कहना चाहिए कि इसमें दो बातें छूट गई हैं। जानकर या अनजाने, सो मैं नहीं जानता। इसमें मेरी सेवाओंका जिक्र तो है तथा अहिंसा और सत्यको जो मेरा जीवन-मन्त्र कहा गया है वह भी बिलकुल ठीक है। यदि ये दोनों मेरे जीवनसे निकल जायें तो मैं मुर्दे जैसाहो जाऊँ और शेष जीवन व्यतीत करना मेरे लिए मुश्किल हो जाये। पर जिन दो साधनों---खादी और अस्पृश्यता-निवारण---के द्वारा मैं सत्य और अहिंसाका पालन करना चाहता हूँ, उनका उल्लेख अभिनन्दनपत्रमें न देखकर मुझे आश्चर्य होता है इन दोनों बातोंकी साधनामें जो सामर्थ्य है वह हिन्दू-मुस्लिम एकतामें भी नहीं है। बल्कि इन दोनोंमें से एककी भी साधना किये बिना हिन्दू-मुसलमानोंका ऐक्य भी असम्भव है। एक बार एक मुसलमान-मित्रने मुझसे कहा कि आप जबतक यह मानते रहेंगे कि हिन्दू धर्ममें अस्पृश्यताके लिए स्थान है तबतक हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य किस तरह हो सकता है? उक्त भाई एक पवित्र मुसलमान हैं। मुसलमानको अपवित्र माननेवाले लोग भी हैं, पर मैं समझता हूँ कि ऐसा मानकर वे अधर्म करते हैं। 'गीता' और हिन्दू धर्मशास्त्र शिक्षा देते हैं कि सम्प्रदाय विभिन्न होकर भी अखण्ड नहीं हैं। हिन्दू धर्म, जिसे मैं आग्रहपूर्वक पकड़े हुए हूँ, गंगोत्री है। उसकी अनेक शाखाएँ हैं। पर उनका मूल एक ही है। और मूलकी तरह मुख भी एक ही है।

कोई व्यक्ति ढेढ़, भंगी या चमारके घरमें पैदा हुआ तो इससे क्या? चाण्डाल नामकी कोई जाति नहीं है। ढेढ़ नामकी कोई जाति है? यह शब्द धर्मशास्त्रमें नहीं है। यह शब्द रूढ़ अवश्य है। ढेढ़ अर्थात् कपड़ा बुननेवाला, भंगी अर्थात् पाखाना साफ

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