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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करनेवाला। मैं तो आज भी भंगी हूँ। बच्चा यदि टट्टी कर दे तो मैं उसे साफ कर डालूं। मेरी माता भी भंगी थी। उसके हाथ हमारा मैला साफ कर-करके घिस गये थे। आपकी माता भी यदि सीताकी तरह सती होगी, पतिव्रता होगी तो उसने भी बच्चोंका मल-मूत्र साफ किया होगा। सती सीता प्रातःस्मरणीया थीं। पर उन्होंने भी बहुत मैला साफ किया था और वे भी भंगी बनी थीं। जिस तरह इन माताओंका त्याग नहीं किया जा सकता उसी तरह भंगीका भी त्याग कैसे किया जा सकता है? यदि हिन्दू धर्मशास्त्रोंके अनुसार अस्पृश्यता धर्मका अभिन्न अंग हो तो मैं हिन्दू कहलानेमें अभिमान न मानूँ। मैं शास्त्रियोंसे भी उद्धत होकर कहूँगा कि हिन्दू धर्म में अस्पश्यताके लिए स्थान नहीं है और निरन्तर कहता रहूँगा कि नहीं है।

जब आजका कार्यक्रम मैंने देखा कि शास्त्री लोग मुझे आशीर्वाद देंगे तो यह देखकर मझे हर्ष भी हआ और खेद भी हआ। खुशी इस बातसे हई कि मेरे अस्पृश्यता-निवारण सम्बन्धी कामके लिए भी मुझे शास्त्रियोंकी ओरसे आशीर्वाद मिलेगा। खुद इस बातका है कि राजाओंकी छायामें खड़े होकर शास्त्री लोग कुछ कहें भी तो उसका क्या मूल्य? मैंने बहुतोंसे सुना है कि काठियावाड़के इन टीलोंमें कमसेकम एक ऐसा अवश्य है जो वन्दनीय है। सब लोग इस बातको जानते हैं कि ठाकुर साहब प्रजाके हित चिन्तक हैं। परन्तु भूल तो प्राणिमात्रसे होती है और यदि मुझे ठाकुर साहबकी भूल मालूम हो तो मैं राजकोटका प्रजाजन होनेके कारण, प्रजाके अधिकारका उपयोग करते हए ठाकुर साहबसे कहूँगा कि आप भल कर रहे हैं। मैं इस राज्यके अपने जमानेके शास्त्रियोंकी हालत जानता हूँ। इनमें एक मावजी जोशी थे, वे शास्त्रज्ञ थे, ज्ञानी थे, किन्तु फिर भी अनेक बार वे सिद्धान्तसे डिग जाते थे। वे स्पष्टवक्ता थे किन्तु हवाका रुख देखकर उन्हें कई मौकोंपर बात करनी पड़ती थी। मैंने सोचा कि ठाकुर साहबने हुक्म दिया होगा कि गांधीको शास्त्रियोंसे आशीर्वाद दिलाया जाये। नहीं तो शास्त्री लोग मुझ-जैसोंको आशीर्वाद क्यों देने लगे? इस तरह मिले आशीर्वादसे लाभ भी क्या है? मैं तो यह चाहता हूँ कि शास्त्री लोगोंमें इतना तेज हो कि यदि मुझे वे सनातनी हिन्दू मानते हों तो वैसा कहें; चाण्डाल मानते हों तो चाण्डाल कहें। मैं तो शास्त्रियोंका भ्रम मिटाना चाहता हूँ। उनसे कहना चाहता हूँ कि जो अहिंसाधर्मका पालन करता है वह किसीको अस्पृश्य नहीं मानता। इस कारण मुझे दुःख होता है कि शास्त्री लोगों द्वारा आशीर्वाद दिलाते हुए भी मेरी अन्त्यज-सेवाका उल्लेख अभिनन्दनपत्रमें नहीं है। इसके बारे में मैं जरूर ठाकुर साहबसे शिकायत करूँगा। मैं तो रोकर राज लेनेवाला हूँ इसलिए उनसे कहूँगा कि जो अमियदृष्टि आप प्रजाके दूसरे वर्गोपर रखते हैं वही अन्त्यजोंपर भी रखिए। तभी आपका यह छोटा-सा राज्य, नन्हा होते हुए भी सारी पृथ्वीको सुशोभित करेगा और रामराज्य कहलायेगा। वाल्मीकि कविने कहा है कि श्री रामचन्द्रने कुत्ते के साथ भी इन्साफ किया था और तुलसीदासने कहा कि रामने चाण्डाल कहानेवालेके साथ मित्रता की, भरत निषादराजके पीछे पागल बनकर घूमते रहे, उसके चरण धोये। आप उन्हीं भरतके वंशज हैं। आप गरीबोंको न भूलें; रातको घुमकर प्रजाके दुःखोंको देखें। अन्त्यजोंका प्रतिनिधि बनकर मैं आपसे यह