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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गर्दनपर चला देना। मैं झूठी खुशामद करूँ तो अधर्म करूँगा। मैंने इस दरबारगढ़में नमक खाया है। भूतपूर्व स्व० ठाकुर साहबने मेरे पिताको चार सौ वर्ग गज जमीन बिना किसी कीमत, शर्त या किरायेके देनेकी कृपा की थी। ठाकुर साहब तो चार हजार वर्ग गज दे रहे थे किन्तु पिताजीने इनकार किया और सिर्फ चार सौ गज ली। इस बातको न कहूँ तो मैं कृतघ्न कहलाऊँगा। सारी पृथ्वी यदि मेरा आदर करे तो भी मैं अभिमान नहीं करूँगा; किन्तु आपके दिये मानकी मेरे निकट बहुत कीमत है। क्योंकि मैं राजकोटमें छोटेसे बड़ा हुआ, अनेक लड़कोंके साथ यहाँ खेला, असंख्य स्त्रियोंने मुझे खिलाया और आशीर्वाद दिया। परन्तु यदि असंख्य स्त्रियाँ मुझे आशिष दें और मेरी माता न दे तो मुझे यह बात कैसे अच्छी मालूम हो सकती है? मुझे दूधकी जगह शराब मिले, गन्ना चाहूँ तो सिगरेट मिले, तो यह मेरे किस कामका? मैं तो स्त्रियों, गरीबों और अन्त्यजोंके दुःखका निवारण कराना चाहता हूँ। अन्त्यजोंके साथ मैं अन्त्यज हो गया हूँ। स्त्रियोंसे मैं कहता हूँ कि मैं आपके लिए स्त्री हो गया हूँ। आपकी पवित्रताकी रक्षाके लिए मैं पृथ्वीका पर्यटन कर रहा हूँ। मैं यहाँ बतौर एक कंगालके आया हूँ; संसारमें जो मुझे मान-आदर मिला है उसके बलपर नहीं आया हूँ। एक प्रजाजनकी हैसियतसे आया हूँ। मुझे यदि आप खबर देंगे कि राज्यमें इतने चरखे चलने लगे हैं, इतनी खादी आ गई है तो मुझे बड़ी खुशी होगी। यदि मुझे खबर मिले कि रानी साहिबा भी खादी पहनती हैं और सारे राज्यमें, दरबारके कोने-कोनेमें खादी व्याप्त हो गई है तो मैं नंगे पाँवों आकर आपको प्रणाम करूँगा। आपका भला हो और ईश्वर आपको प्रजाका कल्याण करने में समर्थ करे।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, २२-२-१९२५

७०. भाषण: राष्ट्रीय शालाके उद्घाटनपर [१]

१५ फरवरी, १९२५

यह राष्ट्रीय शाला अथवा जिस विद्यापीठकी यह शाखा है वह विद्यापीठ, एक महान् प्रयोग है जो इस समय हिन्दुस्तानमें किया जा रहा है। शासक और शासनकी ओरसे ऐसे प्रयोग शायद ही हुआ करते हैं। उनकी प्रवृत्ति प्रचलित पद्धतिपर चलनेकी है। ऐसा राज्य शायद ही कोई होगा जो प्रचलित पद्धतिको छोड़कर दूसरा प्रयोग हाथमें ले। ऐसे प्रयोग करना तो लोगोंका काम है, शासकोंका नहीं। शासक तो लोगोंके रक्षक और प्रतिनिधि हैं। यदि मैं इससे भी आगे बढ़कर कहूँ तो सच्चा राजा प्रजाका सेवक ही है। इसलिए वह लोगोंके खर्चसे ऐसे प्रयोग नहीं कर सकता। अतः इस दृष्टिसे ठाकुर साहबने शिक्षकोंके सम्बन्धमें जो कुछ कहा है वह यथार्थ

१. राजकोटमें।