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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समझते हों तो वे अपने बालकोंको शालामें न भेजें। ईश्वरसे मेरी यही प्रार्थना है कि यदि इसमें मेरी भूल हो तो वह मुझे बचाये और यदि ऐसे माँ-बापोंकी भूल हो तो वे उनके इस दुराग्रहको दूर करे।

किन्तु मैं अन्तमें इतना और कहना चाहता हूँ कि यह शाला ठाकुर साहबकी सहानुभूतिसे, माँ-बापोंके प्रयत्नसे अथवा मेरे प्रयत्नसे अथवा वल्लभभाईके प्रयत्नसे अथवा अभावग्रस्त विद्यापीठकी सहायताके वचनसे नहीं चलेगी; इसका दारोमदार तो अध्यापकोंपर निर्भर है। मैंने तो नहीं देखा कि कोई संस्था केवल धनसे चली हो। यदि धनसे ही चल सकती होती तो कलकत्तेका हार्डिंग स्कूल बन्द न हो जाता। ऐसी संस्थाओंको चलानेके लिए सच्चे संचालकोंकी आवश्यकता होती है। उनमें प्राण फूँक सकें। वे नहीं थे, इसलिए उक्त शाला बन्द हो गई। आप इस शालामें प्राण फूँकें और ईश्वरका नाम लेकर काम करें। जो अपनेको निर्बल मानकर और ईश्वरका नाम लेकर काम करेगा और द्रौपदीकी तरह आर्त स्वरमें ईश्वरकी सहायता माँगता रहेगा उसे ठाकुर साहबसे या विद्यापीठसे सहायता लेनेकी कभी आवश्यकता न पड़ेगी। इसलिए यदिशालाको बन्द करनेकी नौबत आती है तो इसमें दोष शिक्षकोंका ही होगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १-३-१९२५

७१. भाषण: जैन-छात्रावासके उद्घाटन समारोहमें

१५ फरवरी, १९२५

ठाकुर साहबने शिक्षाके सम्बन्धमें सुन्दर विचार व्यक्त किये हैं; किन्तु उन्होंने इस सम्बन्धमें यह कहकर निराशा दिखाई है कि ऐसे छोटे राज्यमें यह सब कैसे किया जा सकता है। ऐसी निराशाका कोई कारण नहीं है। प्रत्युत राज्य छोटा होनेसे उसे कई लाभ भी हैं। राजकोटके लोग ऐसे नहीं है कि उनसे कोई काम न लिया जा सके। यूरोपके छोटे-छोटे राज्य, जैसे स्वीडन, नॉर्वे और स्विटजरलैंड, जिनको गत महायुद्धमें सम्मिलित न होनेसे लोग सामान्यतः नहीं जानते, ऐसे राज्य हैं जिनकी सभ्यता अन्य बड़े राज्योंकी तुलनामें किसी भी प्रकार कम नहीं है और जिन्होंने शिक्षाके क्षेत्रमें अनेक प्रयोग किये हैं। बड़े राज्योंकी कठिनाइयाँ भी बड़ी होती हैं। लॉर्ड रीडिंग-जैसे लोगोंको कितनी कठिनाइयोंका सामना करना पड़ता होगा, यह मैं समझ सकता हूँ। उनको अनेक पक्षों और स्वार्थोंका विचार रखना पड़ता है और विस्तृत क्षेत्र सम्भालना होता है; इसलिए उनसे क्या हो सकता है? इसके विपरीत छोटे राज्योंमें अच्छी योजनाओंपर अधिक सुगमतासे अमल किया जा सकता है। गुजरात विद्यापीठपर कुछ ऐसी ही बात लागू होती है। यदि हम आदर्श छात्रोंको लेकर एक आदर्श शालाकी स्थापना करें तो उसमें से वैसी अनेक शालाएँ उत्पन्न हो जायेंगी। शून्यसे तो