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तार: सी० एफ० एन्ड्रयूजको

कुछ भी उत्पन्न नहीं होता। शून्यका गुणा भी शून्य होता है, किन्तु एकका गुणा तो अनेक हो सकता है। इसलिए निराशाका कोई कारण नहीं है। निराशाका कारण तो मनुष्य सदा स्वयं ही होता है। आत्मा स्वयं अपना शत्रु होता है और स्वयं ही अपना मित्र होता है। मनुष्यके उद्योगकी मर्यादा बाँधनेकी जरूरत नहीं है। हम जैसे आकाशमें ऊँचा उठनेकी मर्यादा नहीं बाँध सकते वैसे ही हम मनुष्यके उद्योगकी कोई मर्यादा नहीं बाँध सकते। यदि हम आकाशमें ऊपरको उड़ें तो उसके लिए आकाशमें पर्याप्त अवकाश है। हाँ, हम नीचे गिरें तो उसकी मर्यादा है। ईश्वरने प्रकृतिमें स्वयं ही भूमि, पत्थर, पानी आदि जैसी मर्यादाएँ बाँध दी हैं। इसलिए हमें निराश होनेका तो कोई कारण ही नहीं है। मैं लोगोंसे इतना ही कहना चाहता हूँ कि वे राजासे जितना लाभ उठाया जा सके उतना उठायें और राजासे मैं यह कहना चाहता हूँ कि उन्होंने बहुत-कुछ किया है; किन्तु जितना किया है अभी उन्हें उससे कहीं अधिक करना बाकी है।

प्रजा और राजाको परस्पर एकरूप हो जाना चाहिए। जैसे 'यथा राजा तथा प्रजा' की उक्ति सत्य है वैसे ही 'यथा प्रजा तथा राजा' की उक्ति भी सत्य है। यदि आप स्वयं कुछ न करें तो राजा बहुत अच्छा होनेपर भी कुछ नहीं कर सकता। यदि आप अपने जीवनको दम्भ, चापलूसी और पाखण्डसे पूर्ण बना लें तो इन सबकी झलक राजाके जीवनमें भी अवश्य आ जायेगी। मुझे इस सम्बन्धमें इसलिए संकेत देना पड़ता है कि 'नमक शहदसे भी अच्छा' यह कहावत इस समय भी सत्य है।


[गुजरातीसे]
नवजीवन, १-३-१९२५

७२. तार: सी० एफ० एन्ड्रयूजको

जतपुर

१६ फरवरी, १९२५

एन्ड्रयूज
द्वारा जहाँगीर पेटिट
माऊंट पेटिट
पेडर रोड
बम्बई

अठारहतक राजकोट, उन्नीसको पोरबन्दर, इक्कीसको बढवान और बाईसको आश्रम। सस्नेह

मोहन अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० २४५६) से।