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७३. तार: मदनमोहन मालवीयको

जेतपुर

१६ फरवरी, १९२५

मालवीयजी
बिड़ला भवन
दिल्ली

आपके लिए नकलें मुहैया कर रहा हूँ।' आशा है आप रावलपिंडी हो आये होंगे।

गांधी अंग्रजी मसविदे (एस० एन० २४५६) से।

७४. सत्याग्रहको कसौटी

वाइकोमसे एक सत्याग्रही अपने पत्रमें लिखते हैं:-

मन्दिरके मार्गपर अन्त्यजोंके आनकी माँगको लेकर जो सत्याग्रह चल रहा है, त्रावणकोरकी विधान परिषद्ने २१ के खिलाफ २२ मतसे उसके खिलाफ प्रस्ताव पास किया है। दुःख इसलिए और भी अधिक होता है कि मतदाताओंपर सरकारने इस बातके लिए दबाव डाला। ... खुद अन्त्यजोंके एक प्रतिनिधिने भी सरकारके हकमें राय दी थी। ... अब लोग 'सीधे प्रहार' और जबरदस्ती मन्दिरोंमें घुस जानेकी हिमायत कर रहे हैं। सत्याग्रह छावनीमें चेचक फैल गई है। ... केरल प्रान्तीय कमेटीका उत्साह मन्द पड़ता जा रहा है। ... हर बातके लिए हम आपको अमूल्य सहायता और सलाहपर निर्भर रहते हैं। हमें पैसेकी बड़ी तंगी है। सभी सत्याग्रही आपकी बाट आतुरतासे जोह रहे है; कहना निरर्थक है कि आपके पधारनेसे हमारे उद्देश्यको अमूल्य सहायता प्राप्त होगी।

यह पत्र अच्छा है; क्योंकि इसमें बात साफ-साफ कही गई है। यदि इसमें कही बातें सच हों तो त्रावणकोर सरकारको इसपर बधाई नहीं दी जा सकती। पर

१. पत्र की।

२. देखिए, "तार: मदनमोहन मालवीयको", ९-२-१९२५।

३. अंशत: उद्धृत।