पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/१८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५३
सत्याग्रहकी कसौटी

तथ्योंको मैं स्वयं ठीक-ठीक नहीं जानता। जबतक मैं जाकर सच्ची हालत न जान लूँ तबतक इसपर अपनी राय कायम करना मुल्तवी रखता हूँ। मैं जितना जल्दी हो सके वाइकोम जाना चाहता हूँ और आशा रखता हूँ कि इसमें विलम्ब न होगा।

इस बीच सत्याग्रहियोंको निराश तो कदापि नहीं होना है। निराशाके सामने वे दब तो हरगिज नहीं सकते। मैंने जो थोड़ी-बहुत तमिल सीखी उसमें से एक कहावत मुझे सदा याद रहती है। उसका शब्दार्थ है 'निर्बलके बल राम'। इस सत्यके प्रति विश्वास ही सत्याग्रहके महान् सिद्धान्तका मूल है। इसके प्रमाणभूत उदाहरणोंसे अकेले हिन्दू धर्मका साहित्य ही नहीं, दूसरे तमाम धर्मोका साहित्य भरा पड़ा है। त्रावणकोर दरबारने भले ही सत्याग्रहियोंके साथ विश्वासघात किया हो और भले ही मैं भी उनका साथ न दूँ; किन्तु इससे क्या होता है? यदि उन्हें उसपर श्रद्धा होगी तो ईश्वर उन्हें मँझधारमें नहीं छोड़ेगा। यदि वे मेरे भरोसे हों तो उन्हें जान लेना चाहिए कि वे एक टूटी हुई पतवारका भरोसा रखे हुए हैं। इतने फासलेपर बैठा हुआ मैं उनकी क्या मदद कर सकता हूँ। मैं भले ही उनके आँसू पोंछ दे सकूँ; पर कष्ट-सहन तो उन्हींको करना है। और यदि उनका कष्ट-सहन शुद्ध होगा तो उसके द्वारा उन्हें विजय मिले बिना नहीं रह सकती। ईश्वर अपने भक्तोंको अन्त तक कसौटीपर चढ़ाता है, पर उनकी सहनशक्तिकी हदसे बाहर हरगिज नहीं। वह उनके लिए जिस अग्नि-परीक्षाका विधान करता है उसमें से उत्तीर्ण होनेकी शक्ति भी वह उन्हें देता है। वाइकोमके सत्याग्रहियोंका सत्याग्रह ऐसा प्रयोगात्मक नहीं है कि कुछ समयमें सफल न होनेपर, या इस हदतक कष्ट सह लेनेके उपरान्त वे उसे बीच में ही छोड़ बैठें। सत्याग्रहीके लिए काल-मर्यादा नहीं होती और न कष्ट सहनेकी ही मर्यादा होती है। इसीलिए सत्याग्रहमें पराजय नामकी कोई चीज ही नहीं होती। जिस बातको लोग सत्याग्रहियोंकी हार मानते हों सम्भव है वह उनकी विजयका उषाकाल हो--प्रसूतिके पहलेकी वेदना हो।

वाइकोमके सत्याग्रहियोंका युद्ध स्वराज्यसे कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। वे युगोंसे प्रचलित अपराध और अन्यायका मुकाबला कर रहे हैं। कट्टरता, अन्धविश्वास, रूढ़ि और अधिकारीवर्ग उसके पृष्ठपोषक हैं। यह उन तमाम युद्धोंमें एक ऐसा पुण्य युद्ध है जिन्हें ज्ञानके नामपर प्रचलित अज्ञान और धर्मके नामपर प्रवर्तित अधर्मके खिलाफ लड़ा ही जाना चाहिए। यदि उनके युद्ध में रक्तपातको कोई स्थान नहीं दिया जाना है तो कठिनसे-कठिन परिस्थितिमें भी उन्हें धीरज ही रखना है। आगकी धधकती ज्वालाओंके मुकाबलेमें भी उन्हें विचलित नहीं होना है।

हो सकता है कि [प्रान्तीय] कांग्रेस कमेटी उन्हें कुछ भी मदद न दे। उन्हें कोई आर्थिक सहायता न मिले। उन्हें भूखों मरना पड़े। फिर भी इन भयंकर कसौटियोंमें उनकी श्रद्धा देदीप्यमान दिखाई देनी चाहिए।

सत्याग्रही जो कर रहे हैं वहीं 'सीधा प्रहार' है। परन्तु प्रतिपक्षियोंपर वे क्रोध नहीं दिखा सकते। क्योंकि वे बेचारे इससे अधिक नहीं जानते हैं। वे सबकेसब दगाबाज नहीं हैं; जिस तरह सबके-सब सत्याग्रही भी साफ और पाक नहीं होते। जिसे वे अपने धर्मपर आक्रमण समझते हैं उसके खिलाफ वे प्रामाणिकताके