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हिन्दू-मुस्लिम प्रश्न

जितने कि मुसलमान किसी गैर-मुसलमानसे? और फिर अछूतोंको लीजिए क्या उनकी तादाद 'मुस्लिम अल्पसंख्यकोंके बराबर नहीं है? यदि हिन्दुस्तानके मुस्लिम पृथक् और विशेष ढंगका व्यवहार, रक्षा और गारंटी चाहते हैं तब अछूतोंका दावा कितना प्रबल होगा? ...वे तो सदियोंसे और वास्तवमें आज भी ऐसी निर्योग्यताओंके शिकार हैं जिनसे न मुस्लिम और न सवर्णोंकी कोई अल्पसंख्या पीड़ित है और न भविष्यमें उनके विषयमें इस तरहकी कोई आशंका हो सकती है। उदाहरणके तौरपर वाइकोम सत्याग्रह, पालघाटका झगड़ा, और बम्बईके 'टूक-टूक कर देने' की प्रतिज्ञा करनेवालोंको लीजिए। उन आदिम जातियोंका यहाँ में जिक्र ही नहीं करता हूँ जिनकी गिनती हिन्दुओंमें की जाती है। तब क्या सचमुच केवल मुसलमान ही अल्पसंख्यक हैं?

शब्दोंके नीचे रेखांकन लेखकका है। यह पत्र मैं उसमें परिलक्षित असन्दिग्ध गम्भीरताके कारण छाप रहा हूँ। फिर भी मेरी, एक निष्पक्ष निरीक्षककी दृष्टिमें लेखककी वह दलील जिसके द्वारा वे यह दिखलाना चाहते हैं कि हिन्दुस्तानमें मुसलमानोंकी अल्पसंख्या नहीं है, सत्यका आभास-भर देती है। लेखक इस बातको भूल जाते हैं कि बात तो सारे मुसलमानोंके सारे हिन्दुओंके मुकाबले अल्पसंख्यक होनेकी है। लेखक 'हँसब ठठाइ, फलाइब गालू' वाला आग्रह नहीं रख सकते। यद्यपि हिन्द आपसमें विभक्त हैं, तथापि मुसलमानोंके ही नहीं तमाम अ-हिन्दुओंके विरोधमें वे लगभग एक होकर उनका मुकाबला करते हैं। मुसलमान भी यद्यपि आपसमें अनेक दलोंमें विभक्त हैं, तो भी कुदरती तौरपर तमाम गैर-मस्लिमोंका मकाबला वे एक होकर करते हैं। हकीकतको भुलाकर या उसको अपनी तजवीजोंके मुआफिक बैठाकर इस सवालको कभी हल नहीं किया जा सकता। हकीकत यह है कि मुसलमान सात करोड़ हैं और हिन्दू बाईस करोड़। हिन्दुओंने इस बातको कभी नामंजूर नहीं किया। अब हम यह भी देखें कि मामला दर-असल क्या है? अल्पसंख्यक लोग बहुसंख्यक लोगोंसे हमेशा महज इसलिए नहीं डरते कि उनकी संख्या ज्यादा है। मुसलमान हिन्दुओंकी बहुसंख्यासे इसलिए डरते हैं कि उनका कहना है, हिन्दुओंने हमेशा ही हमारे साथ गैर-इन्साफी की है, हमारे मजहबी जजबातकी इज्जत नहीं की है; और उनका यह कहना भी है कि हिन्दू लोग तालीम और धन-दौलतमें हमसे बढ़े-चढ़े हैं। ये बातें ऐसी ही हैं या नहीं इस सवालसे हमें यहाँ कोई मतलब नहीं। हमारे लिए इतना ही काफी है कि मुसलमानोंका विश्वास ऐसा ही है और इसलिए वे हिन्दुओंकी बहुसंख्याकी ओर सशंकित है। मुसलमान लोग इस डरका इलाज कुछ अंशमें पृथक् निर्वाचन और विशेष प्रतिनिधित्व--कुछ जगहोंमें तो अपनी संख्यासे भी ज्यादा प्रतिनिधित्व--प्राप्त करके कराना चाहते हैं। हिन्दू लोग मुसलमानोंकी अल्पसंख्याको तो मानते हैं पर उनके इन्साफ न करनेके इलजामसे इनकार करते हैं। इसलिए इसकी तसदीक करनेकी जरूरत है। मैंने हिन्दुओंको इस कथनका खण्डन करते नहीं देखा है कि वे तालीम और धन-दौलतमें मुसलमानोंसे बढ़कर हैं।