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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

होगी। मेरी नजरमें तो वर्तमान मताधिकार किसी भी स्वराज्य योजनामें स्थान पाने योग्य नहीं है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९-२-१९२५

७६. एस० डी० एन० को[१]

मैंने आपके पत्रके एक भागकी चर्चा अग्रलेखमें [२] की है। समयाभावके कारण दूसरे भागपर विचार फिर कभी करूँगा, शायद अगले हफ्ते।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९-२-१९२५

७७. टिप्पणियाँ

पहली मार्च याद रहे

पाठक इस बातको भूले न होंगे कि बेलगाँवमें कांग्रेसकी बैठकके बाद ही कुछ कार्यकर्त्ताओंने १ मार्चके पहले स्वयं कातनेवाले सदस्योंकी संख्या दर्ज करनेका वादा किया था। वह दिन बहुत नजदीक आ गया है। मेरे सामने उन सज्जनोंकी नामावली मौजूद है जिन्होंने ऐसा वादा किया था। मैं आशा करता हूँ, वे अपने वचनका पूरा-पूरा पालन करेंगे। लोगोंकी जानकारीके लिए मैं यह कह देना चाहता हूँ कि उस समय उपस्थित लोगोंने सारे देशसे ६,८०३ सदस्य बनानेका वादा किया था, और जबकि उस समय सभी प्रान्तोंके कार्यकर्त्ता मौजूद नहीं थे। पर, उदाहरणके लिए, बिहार और गुजरातने बेलगाँवके वादेसे अधिक सदस्य दर्ज करनेका निश्चय किया है। यदि भिन्न-भिन्न प्रान्तोंके मन्त्री कृपापूर्वक स्वयं कातनेवाले तथा अन्य सदस्योंकी संख्या इस मासके अन्ततक 'यंग इंडिया' के नाम तारके जरिये भेज दें तो बड़ी अच्छी बात हो। कार्यकर्त्ताओंको सब जगह चार-चार आना देनेवाले सदस्य दर्ज करनेकी अपेक्षा स्वेच्छापूर्वक कातनेवाले सदस्य दर्ज करनेके काममें अधिक कठिनाई आ रही है। मेरे नजदीक कताईके मताधिकारका महत्त्व भी इसी कठिनाईमें है। इस कठिनाईका कारण योग्यताकी कमी नहीं बल्कि मनोयोग और अध्यवसायकी कमी है। यह बात ध्यान रहे कि इस कठिनाईका अनुभव सिर्फ चरखेमें अविश्वास रखनेवाले लोगोंको ही नहीं हो रहा है बल्कि विश्वास रखनेवाले लोगोंको भी हो रहा है। वे सहसा वादे कर लेते हैं और झटही उन्हें तोड़ भी डालते हैं, जैसा कि

  1. पिछले शीर्षकमें उद्धृत पत्रके लेखक।
  2. देखिए "हिन्दू-मुस्लिम प्रश्न", १९-२-१९२५।