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दिसम्बरके सूतके आँकड़ोंसे मालूम होता है। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि जिन सज्जनोंने वादे किये हैं, वे अब इसके लिए अविराम प्रयत्न करेंगे।

पुरस्कार-निबन्धके सम्बन्धमें

कुछ मित्रोंने सुझाव दिया है कि हाथ-कताई और खद्दरके सम्बन्धमें पुरस्कारनिबन्ध भेजनेका समय बढ़ा दिया जाये। एक मित्रका सुझाव है कि इसकी तारीख नवम्बरतक बढ़ा दी जाये। लेकिन मैं ऐसा करूँ तो जिस उद्देश्यके लिए निबन्धकी जरूरत है वह उद्देश्य ही विफल हो जायेगा। श्री रेवाशंकरने इस पुरस्कारकी घोषणा ईसवी सन्के इसी वर्षमें, जो तेजीसे खत्म हो रहा है, चरखेके सन्देशके सम्बन्धमें विचार और कार्यको उत्तेजन देनेकी दृष्टिसे की है। इसके अलावा अवधि जो कम रखी गई है उसका कारण यह है कि हमारे पास इस विषयके जो थोड़े-बहुत अनुसन्धानकर्ता हैं, वे अपनी शक्तिको केवल इसी दिशामें लगा सकें और आर्थिक लाभकी दृष्टिसे इसमें जरूरतमन्द खादी-विद्यार्थियोंको आकर्षित करनेका ध्यान भी रखा गया है ताकि वे इस अवधिमें निबन्ध तैयार करने में अपना समस्त ध्यान केन्द्रित कर सकें। मैं यह आशा नहीं करता कि इस सम्बन्धमें कोई विशद् ग्रन्थ तैयार हो जायेगा, लेकिन मैं यह आशा अवश्य करता हूँ कि इस विषयपर एक उच्च स्तरका प्रारम्भिक निबन्ध लिखा जा सकेगा जो एक अधिक विशद् ग्रन्थ प्रामाणिक रूपमें लिखने में सहायक होगा। निबन्धमें इस विषयपर एक विस्तृत पुस्तक-सूची और इस सूचीकी पुस्तकोंका वैज्ञानिक, संक्षिप्त, सम्बद्ध और संगत विवरण होना चाहिए।

ऐसे अनेक लोग हैं जो इन स्तम्भोंमें और अन्यत्र चरखेका आर्थिक महत्त्व सिद्ध करनेके लिए जो कुछ लिखा जाता है, प्रायः उसके तथ्योंपर शंका करते हैं। अनेक लोगोंको यह सन्देह है कि चरखा मिलोंसे स्पर्धा नहीं कर सकता। दूसरे कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसे महज एक खिलौना समझते हैं और यह मानते हैं कि विदेशी कपड़ेके आयातपर इसका कोई प्रभाव भी नहीं पड़ सकता। इस निबन्धमें ऐसे आँकड़े और तर्क चरखेके महत्त्वके सम्बन्धमें दिये जाने चाहिए जो अकाट्य हों। यदि निष्पक्ष और सत्यशोधक विद्यार्थियोंके आँकड़े इसे असम्भव बतायें तो बात दूसरी है। यह प्रयत्न इसी वर्षमें, जबकि मताधिकारके रूपमें चरखा चलानेका प्रयोग जाँचा जा रहा है, किया जाना चाहिए।

मुझे पाठकोंको यह सूचना देते हुए हर्ष होता है कि कुछ प्रतिभाशाली युवक नियमित रूपसे इस काममें लगे हुए हैं और इसमें वे इसके आर्थिक महत्त्वके खयालसे नहीं, बल्कि इसलिए लगे हैं कि उन्हें इससे प्रेम है। मैंने ऐसे दो यवकोंसे निबन्ध प्राप्तिका समय बढ़ानेके सम्बन्धमें सलाह की और उन्होंने कहा कि यदि समय बढ़ाया जा सकता हो तो अच्छा हो।' इसलिए अन्तिम तिथि अगली ३० अप्रैल कर दी है। इसका अर्थ है ६ सप्ताह और। मेरा विश्वास है कि यह वृद्धि उन सभी लोगोंके खयालसे, जो उत्तम निबन्ध लिखनेका प्रयत्न कर रहे हैं, पर्याप्त समझी जायेगी।

एक दूसरा सुझाव एक अन्य मित्रकी ओरसे आया है। उनका खयाल है कि परीक्षकोंमें एक दो मिल-मालिक--जैसे अम्बालाल साराभाई और मटुभाई काँटावाला--