पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/१९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६१
टिप्पणियाँ

(३) मैं यह नहीं जानता कि बंगालकी हिन्दू महासभा मेरे नामसे क्या कहती है। मेरी स्थिति तो बिलकुल साफ है। अछूतोंको शूद्रोंमें गिनना चाहिए और उनके साथ वैसा ही व्यवहार रखना चाहिए जैसा कि हम शूद्रोंके साथ रखते हैं और चूँकि हम शूद्रोंके हाथका पानी पीते हैं, हमें अछूतोंके हाथका पानी पीनेमें भी नहीं झिझकना चाहिए।

जेलसे

आचार्य गिडवानीने अपनी धर्मपत्नीके नाम जो पत्र भेजा है, उसे देखनेका अवसर मुझे भी मिला। उसका कुछ अंश नीचे देता हूँ:

बच्चे कैसे हैं? उनकी और अपनी चायको आदतको छुड़ा दो, और जितना दूध दे सको, दो। तुम्हारी पढ़ाईका क्या हाल है? जबतक तुम रचनापर ध्यान न दोगी, तबतक तुम जल्दी आगे नहीं बढ़ सकोगी। मुझे भरोसा है कि तुम हिन्दी और चरखके सम्बन्धमें लापरवाही नहीं कर रही हो। दिनका सारा वक्त धूपमें और खुली हवामें बिताओ। हालाँकि मेरा वजन कम ही बढ़ा है पर हालत यकीनन् अच्छी है। जबतक तुम फिर मिलने आओगी तबतक मैं खूब चंगा हो जाऊँगा। मैं इसके लिए 'मुलरकी प्रणाली' को धन्यवाद देता हूँ, जो जवाहरलालने [१] जब वे यहाँ थे मुझे बताई थी। मेरा स्वास्थ्य ऐसा नहीं बिगड़ा है कि सुधर न सके। उस नौ महीनकी काल कोठरीमें मैं बराबर प्राणायाम और शारीरिक व्यायाम करता रहा था। मैंने उस पद्धतिका पूरा-परा अभ्यास कर लिया है। यदि तुम भी उसको शुरू कर सको और बच्चोंको भी सिखा सको तो अच्छा हो। बहरहाल पार्वतीसे कह जरूर देना कि मैं चाहता हूँ कि वह घरके तमाम छोटे-बड़ोंको यह पद्धति सिखा दे। सम्बन्धित पुस्तक बाजारमें मिलती है।

पिछला खत भेजने के बाद मैंने ज्यादा नहीं पढ़ा है। जिन किताबोंको भेजनके लिए तुम्हें लिखा था उनके न मिलनेसे संस्कृत -की मेरी पढ़ाई रुकी हुई है।

फिलहाल मैं बढ़ईगिरीका काम सीख रहा हूँ। कुछ दिनके बाद बुनना सीखना शुरू करूँगा।

चूँकि मैं भी कैदी रहा हूँ इसलिए दूसरे कैदियोंके अनुभवोंके साथ अपने अनुभवोंका मिलान अच्छा लगता है। आचार्य गिडवानी ही ऐसे नहीं हैं जिन्हें जेलमें जाकर चायसे अरुचि हुई हो। मैं खुद भी रोज चाय और काफी पिया करता था। लेकिन मेरी पहली जेल-यात्राने ही वह आदत छुड़ा दी। वहाँ चाय नहीं दी जाती थी और चायकी गुलामीसे छूटनेका खयाल मुझे अच्छा मालूम होने लगा। हिन्दुस्तान तो इस शौकको करनेकी स्थितिमें भी नहीं है। मगर चायकी सबसे बड़ी खराबी यही है कि वह दूधका स्थान ले लेती है। चायमें सिर्फ उतनी ही पोषक शक्ति है जो उसमें पड़े दूध और चीनीसे मिलती है। जिस तरीकेसे हिन्दुस्तनमें चाय बनाई



२६-११
  1. नेहरू।