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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जाती है वह तो दूध और चीनीका असर भी मार देता है। यहाँ चायको इतना उबालते हैं कि उसकी पत्तियोंका दूषित व हानिकर रस, टेनिन भी उसमें उतर आता है। यदि चाय पीनी ही हो तो उसकी पत्तियाँ हरगिज न उबाली जानी चाहिए। बल्कि उन्हें छन्नीमें रखकर धीमे-धीमे उसपर खौलता हुआ पानी उँड़ेलना चाहिए। इस तरह जो पानी बरतनमें गिरे उसका रंग सूखी घासके रंगका होना चाहिए। सबसे अच्छी बात तो आचार्य गिडवानीका अनुकरण करना ही है; अर्थात् हम चाय पीना बिलकुल छोड़ ही दें। जो चायको अपनी खूराक न बनाना चाहते हों, सिर्फ शौकिया पीना चाहते हों, वे महज खौलता हुआ पानी लेकर उसमें थोड़ा दूध और थोड़ी चीनी मिलाकर रंगके लिए थोड़ी दालचीनीकी बुकनी डालकर ले सकते हैं। 'मुलरकी प्रणाली' से सम्बन्धित आचार्य गिडवानीके विचारोंमें लोग दिलचस्पी लेंगे। मेरी रायमें आचार्यजी इस मामलेमें नये मुल्ला-जैसे हैं। इन तमाम तरीकोंका लाभ शुरूमें जितना दिखाई देता है उतना वास्तवमें होता नहीं है। 'मुलरकी प्रणाली' में नई बात कुछ नहीं है। वह हठयोगकी कुछ क्रियाओंकी बेतुकी और अधूरी-सी नकल है। सिर्फ तन्दुरुस्तीके ही खयालसे देखें तो हठयोगकी क्रियाएँ प्रायः पूर्णताको पहुँच गई हैं। उनमें अनेक हिन्दुस्तानी बातोंकी तरह सिर्फ दोष इतना ही है कि उनका जन्म हिन्दुस्तानमें हुआ है। उसका रहस्य केवल गहरे और नियमित श्वासोच्छ्वास और रगोंको हलके हलके तानने में है। मुलरकी ओर हमारा ध्यान इसीलिए दौड़ जाता है कि उसने अपने इन व्यायामोंके शारीरिक लाभ बताये हैं। मुलरकी पद्धतिका उपयोग उन लोगोंके लिए अवश्य है जो हठयोगकी गुत्थियोंको समझनेके झगड़े में न पड़ना चाहते हों। वे जरूर मुलरकी आसान पद्धतिका लाभ उठा सकते हैं। फिर हमारे यहाँ हठयोगके ज्ञाता भी बहुत नहीं हैं और उनके पास सबकी पहुँच भी नहीं हो सकती। जो थोड़े बहुत हैं वे स्वभावतः, और उचित ही, उसके शारीरिक लाभोंके फेरमें नहीं पड़ते और इसलिए वे अध्यात्मके प्रेमी लोगोंको उसकी शिक्षा देते हैं।

चरखके प्रेमी आचार्यकी चरखा-भक्ति तथा हिन्दी और संस्कृतके प्रेमकी कद्र किये बिना न रहेंगे। बहुत दिनोंके बाद आचार्य गिडवानीके इस उल्लासपूर्ण पत्रको छापते हुए मुझे बड़ा आनन्द हो रहा है; आचार्यजीकी तन्दुरुस्ती अब पहलेसे बहुत अच्छी है।

एक नई बात

पिण्डीसे मेरे लौटनेके बाद मैंने बोरसद ताल्लुकेके कोई १० गाँवोंकी यात्रा की है। यह वही तहसील है जहाँ कि १९२३ में श्री वल्लभभाई पटेलके नेतृत्वमें शानदार सत्याग्रह हुआ था और उसमें विजय भी प्राप्त हुई थी। इसके निवासी बुद्धिमान्, सुयोग्य और अपेक्षाकृत हट्टे-कट्टे हैं। पर मुझे यह देखकर बड़ा खेद हुआ कि कुछ गाँवोंमें गन्दगी और भ्रष्टता फैली हुई है और उसका एकमात्र कारण है दरिद्रता। कड़ी सर्दीके कारण फसल नष्ट हो गई थी। कुछ गाँवोंमें तो लोगोंको रात-दिन यही चिन्ता बनी रहती है कि कहीं वहाँके प्रमुख जमींदार अपने मवेशी उनके खेतोंमें ही न छुड़वा दें। उन्हें यह भरोसा नहीं है कि कल क्या होगा और न वे यही महसूस