पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/१९३

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कर पाते हैं कि उनका अपना कोई घरद्वार है। इसका नतीजा है निराशा और इसलिए कामकी ओर उदासीनता। ऐसे लोगोंको चरखा ही एक सहारा था। मगर वहाँ चरखेका काम भी धीरे-धीरे ही चल रहा है। वे कुछ भी करना नहीं चाहते। वे जैसे-तैसे अपनी दो वक्तकी रोटी-भर कमा लेना चाहते हैं। उनकी शून्य और अविश्वासशील दृष्टिसे यही झलकता था कि 'बरसोंसे हमारा यही हाल है। इसी तरह हमारी जिन्दगी खत्म हो जाने दो।' यदि कोई उन्हें कुछ दूसरा उद्योग या काम सुझाता है तो वे उसकी ओर कोई रुचि नहीं दिखाते। वे काम नहीं करना चाहते क्योंकि उन्होंने अभीतक दूसरोंकी चाकरी ही बजाई है और इसलिए वे चाकरीको ही सर्वोत्तम समझते हैं, स्वयं उद्योगशील बननेको नहीं। मेरे लिए यह एक नई बात थी और इससे मुझे बड़ा दुःख हुआ। पर मैंने ऐसी हालत इसके पहले भी चम्पारनमें देखी थी और उड़ीसामें उससे भी बदतर। पर इस बोरसद तहसीलमें मुझे बड़ा धक्का लगा। मैंने यह नहीं सोचा था कि बोरसद तहसीलमें ऐसा अनुभव होगा। बल्कि मैं तो यह उम्मीद कर रहा था कि वहाँ सुव्यवस्थित गाँव देखनेको मिलेंगे और उनमें उत्साह और आशा तथा प्रसन्नताके दर्शन होंगे। सभी गाँवोंकी यही हालत हो सो बात नहीं है। वे एक दूसरेके बहुत नजदीक बसे हुए हैं, फिर भी हरएककी अपनी समस्या है और हरएककी अपनी खसूसियत है। जिन गाँवोंका मैंने जिक्र किया है, यदि उनके लिए आशाका कोई साधन हो सकता है तो वह एकमात्र चरखा ही है। उसे न तो मवेशी चर सकते हैं, न तुषार जला सकता है। कुदरतके निष्ठुर उत्पात तथा एक हदतक मनुष्यको ज्यादतीसे भी बचनेका यही साधन है।

जो देशप्रेमी युवक ग्राम्य-जीवनकी कठिनाइयोंका खयाल नहीं करते, और जो मूक तथा लगातार परिश्रममें, जो कि बहुत भारी तो नहीं होता है, फिर भी अपनी एकरूपताके कारण काफी भारी महसूस होता है, आनन्द प्राप्त कर सकते हैं, उनके लिए वहाँ भरपूर काम पड़ा हुआ है। जीवनदायी उद्योगकी एकरसताका अनुभव कर पानेके लिए पर्याप्त मनोयोगपूर्वक श्रम करनेकी आवश्यकता है। संगीतका नया विद्यार्थी उसके आरम्भिक पाठोंको रूखा पाता है; पर ज्यों ही वह उस कलामें प्रवीण हो जाता है, उसकी एकरसता ही उसके लिए आनन्ददायिनी हो जाती है। यही बात ग्राम कार्यकर्त्ताओंपर घटती है। मादक शहरी जीवनका नशा उतरते ही जब काममें मन लगने लगेगा तब शारीरिक श्रमकी एकरसतासे उन्हें बल और प्रेरणा मिलने लगेगी; क्योंकि उसमें उत्पादनकी शक्ति है। सूर्य-मण्डलको अनुदिन उसी क्रम और अचूक नियमितताके साथ परिभ्रमण करते देखकर किसका जी ऊबा है? महापुरातन होनेपर भी उसे देखकर मनमें आश्चर्य और सराहनाके भाव उत्पन्न होते हैं। उसकी सम-गतिमें व्याघात होनेका अर्थ सारी मनुष्यजातिका सर्वनाश ही है। यही बात उस 'ग्राम-सूर्यमण्डलपर भी घटती है जिसका मध्यबिन्दु चरखा है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १९-२-१९२५