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७८. पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको


माघ वदी ११ [१९ फरवरी, १९२५][१]

सुज्ञ भाईश्री,

मैं यह पत्र पोरबन्दर जाते हुए गाड़ीमें और इसीलिए पेन्सिलसे लिख रहा हूँ।

मैं आश्रममें २२ से २६ तक रहूँगा और २७को दिल्लीके लिए निकलूँगा। वहाँ मैं २ मार्च तक तो ठहरूँगा ही। उक्त अंग्रेज सज्जन मुझसे इस बीचमें मिल सकते हैं। ३ मार्चके बादका कार्यक्रम दिल्लीमें निश्चित होगा।

जब मैं राजकोटसे रवाना ही हो रहा था तब उससे जरा पहले भाई जयशंकर वाघजी जाम साहबकी ओरसे मुझे मिलने आ गये थे। उन्होंने कहा कि जाम साहब मुझसे मिलनेके लिए उत्सुक हैं। वे मुझसे बम्बईमें मिलना चाहते हैं और ७ मार्चके बाद। मैंने निश्चय किया कि जब बम्बई जाऊँगा तब जयशंकरको तार दे दूँगा।

मुझे गोंडल के दीवानका असन्तोषजनक उत्तर मिला है। उन्होंने लिखा है कि मेरा गोंडल राज्यके कार्यमें हस्तक्षेप करना अनुचित है। सूचित करें, आपके प्रयत्नका क्या परिणाम हुआ।

राजकोटमें ठाकुर साहबने बहुत सौजन्य दिखाया। मैंने उनको बता दिया है कि मेरे विचार क्या हैं।

आशा है आप चरखा नियमसे चलाते होंगे।

मोहनदासके वन्देमातरम्

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३१९४) से।
सौजन्य: महेश पट्टणी

७९. तार: वाइसरायके निजी सचिवको

पोरबन्दर

१९ फरवरी, १९२५

वाइसरायके निजी सचिव
दिल्ली

तारके लिए धन्यवाद।[२] आपके तारमें उल्लिखित 'यंग इंडिया' में मैंने एक आदर्शकी बात की है, परन्तु मुकदमोंको वापस लेनेके काममें विघ्न डालनेकी मेरी कोई इच्छा नहीं। मेरा प्रयोजन सच्ची शान्तिकी स्थापना है

  1. गांधीजी १९ और २० फरवरी, १९२५ को पोरबन्दरमें थे।
  2. देखिए, "तार: वाइसरायके निजी सचिवको", ९-२-१९२५ की पाद-टिप्पणी।