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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

क्या आप तभी मेरी बातें सुनेंगी? और जब मैं कहूँगा कि चूल्हेके साथ चरखा भी रखो तो क्या यह कहेंगी कि बूढ़े की अक्ल मारी गई है? मैं पागल नहीं हूँ, मैं तो समझदार हूँ। मेरा अनुभव ही पुकार-पुकारकर बोल रहा है।

एक शख्सने मुझसे पूछा था कि तुम पोरबन्दरका अभिनन्दन-पत्र लेकर क्या करोगे? पहले यह तो जान लो कि वहाँके खादी पहनने वाले कैसे हैं? लेकिन यह पूछनेके बदले कि पोरबन्दरमें खादी पहननेवाले लोग कैसे हैं, मैं यही पूछता हूँ कि खादी पहननेवाले हैं ही कहाँ? आपको महीन कपड़ोंकी लालसा रहती है। पर करोड़पतियोंने मुझे यह बताया है कि हमेशा बारीक कपड़ा खरीदना तो उन्हें भी महँगा जान पड़ता है। लेकिन जिस प्रकार घरमें आप बारीक सेव बनाती है, उसी प्रकार यदि आप बारीक कातें तो बारीक कपड़े भी पहन सकेंगी।

जबतक हम सूत कातनेकी इस साधनाको नहीं अपनायेंगे तबतक प्रेमकी गाँठ नहीं बँधेगी। यदि समस्त जगत्को आप प्रेमकी गाँठसे बाँध लेना चाहते हैं तो दूसरा उपाय ही नहीं है। हिन्दू-मुसलमान प्रश्नके लिए भी दूसरा कोई उपाय नहीं है। भाई शुएब कुरेशी भी मेरे साथ राजकोट गये थे। उन्हें वहाँके मुसलमानोंने कहा कि गांधी आपको धोखा देता है; खादीका प्रचार करके विलायती कपड़ोंका व्यापार करनेवाले मुसलमानोंको भिखारी बनाना चाहता है। लेकिन शुएब कुछ सुननेवाले थोड़े ही थे। वे जानते हैं कि विदेशी कपड़ोंका व्यापार करनेवाले मुट्ठीभर मुसलमानोंका मैं बुरा नहीं चाह सकता। वे खुद खादीके भक्त हैं और वे यह भी जानते हैं कि जितनी सेवा में इस्लामकी कर रहा हूँ उतनी खादीकी और देशकी भी नहीं कर सकता। मुसलमान भाइयोंको समझना चाहिए कि उनकी जन्मभूमि यही है और उसे स्वतन्त्र किये बिना इस्लाम-के स्वतन्त्र होनेकी आशा नहीं है।

मेरी काठियावाड़की यह शायद आखिरी ही मुलाकात ठहरे। शायद मेरी जिन्दगी अब बहुत कम बरसोंकी है। मैंने बड़ी अनिच्छाके साथ कांग्रेसका अध्यक्ष होना स्वीकार किया है और काठियावाड़ राजकीय परिषदका भी। अब सिर्फ दस महीने बचे हैं। मैं आप लोगोंके पास इसीलिए आया हूँ कि यदि आप विशेष रूपसे मुझे अपना भाई समझते हों---यद्यपि मैं तो जीव-मात्रका भाई हूँ--तो मेरी इस प्रार्थनाको समझकर रोज आधा घंटा चरखा अवश्य चलायें। उससे आपकी कोई हानि नहीं है; और उससे देशकी दरिद्रता दूर होगी। आप मुझसे कितना दुखड़ा सुनना चाहते हैं? यदि आप अस्पृश्यता दूर न कर सकें तो धर्मका नाश हो जायेगा। सच्चा वैष्णवधर्म तो वही है जिसमें पोषक-शक्ति अधिकसे-अधिक हो। आज तो वैष्णव-धर्मके नामपर अन्त्यजोंका नाश हो रहा है। हिन्दू धर्मका रहस्य अस्पृश्यता कदापि नहीं है। अस्पृश्यता-निवारण, हिन्दू-मुस्लिम ऐक्य और खादी यह मेरी त्रिवेणी है। राजा और गरीब, सभी भाई-बहनोंसे मैं आज इसीकी माँगकर रहा हूँ।

शराबकी कुटेवका अन्त होना ही चाहिए और वह प्रजाके प्रयत्नोंसे ही। इसमें मुझे कुछ भी शंका नहीं है कि प्रजाके प्रयत्नोंसे ही यह बुराई दूर होगी। कुछ मूर्ख मनुष्योंने जोर-जबरदस्तीसे काम न लिया होता तो आज यह बुराई हिन्दुस्तानसे कभी