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भाषण: पोरबन्दरमें

की नष्ट हो गई होती। मैंने सुना है कि पोरबन्दरमें कुछ मल्लाहोंने शराब छोड़ दी है। मैंने यह भी सुना है कि राजा साहब इस आन्दोलनसे सहमत हैं और मदद करनेके लिए भी तैयार हैं। हम जबतक शराबकी लतसे छुटकारा नहीं पाते तबतक हम स्वतन्त्र नहीं हो सकते। स्वतन्त्रताके लिए यूरोपके उपाय हमारे काम नहीं आ सकते। वहाँके लोगों और आबोहवामें तथा हमारे यहाँके लोगों और आबोहवामें जमीन-आसमानका अन्तर है। वहाँके लोग दयाका त्याग कर सकते हैं, हम नहीं कर सकते। विदेशोंके मुसलमान मुझसे कहते हैं कि यहाँके मुसलमान शरीर-बलमें उनके मुकाबले में कमजोर हैं। यह अच्छा है या बुरा, हिन्दू-मुसलमानोंसे पूछो, जगतसे पूछो। लेकिन मेरा खयाल है कि वे कमजोर हैं इस कारण उनका कुछ भी नहीं बिगड़ेगा। दयालु बननेके मानी भी यह नहीं है कि मनुष्य डरपोक बन जाये या लाठीका त्याग कर दे। लेकिन उसके मानी हैं लाठी होनेपर भी उसका इस्तेमाल न करना। जो लाठीका इस्तेमाल नहीं करता फिर भी सीना तानकर लाठीका इस्तेमाल करनेवालेके सामने जाता है, वह अपेक्षाकृत बलवान है। पहलवानका मन्त्र, क्षात्रधर्मका रहस्य अपने स्थानका त्याग न करना, पीठ न दिखाना है और इस गुणको प्राप्त करनेके लिए नशेकी चीजोंका त्याग आवश्यक है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि पोरबन्दरकी प्रजा शराबका सर्वथा त्याग कर दे। राजकोटमें यह बुराई बहुत फैल रही है। सिविल स्टेशनके दुकारनदारके साथ स्पर्द्धा हो रही है और इसलिए वहाँ शराब सोडेके दाम बिकती है। लेकिन जिन्हें इतनी सस्ती शराब मिल रही है, वे खूनके आँसू बहा रहे हैं। मजदूरी करनेवालोंकी औरतें मुझसे पूछती हैं, "आप ठाकुर साहबसे इसके बारेमें कुछ न कहेंगे? इस बुराईने हमारे घरका सत्यानाश कर दिया है। हमारे घरमें कलह घुस आई है। हमारे पति व्यभिचारी बन गये हैं और हम कंगाली भोग रहे हैं।" इन गरीब स्त्रियोंसे यदि आशीर्वाद लेना हो तो हम सबको कटिबद्ध होकर राजासे कहना होगा कि वे इस दु:खसे रैयतको बचायें। इससे कुछ आमदनी होती हो तो भी क्या और इससे कुछ क्षणिक आनन्द मिलता हो तो भी क्या? यदि यह बुराई फैलेगी तो देशकी स्थिति ऐसी भयंकर हो जायेगी कि उसका खुद-ब-खुद नाश हो जायेगा; किसीको उसके नाश करनेका प्रयत्न न करना पड़ेगा। ईश्वर आप लोगोंका कल्याण करे, मेरे दीन वचनोंको सुनने और समझनेकी शक्ति वह आपको दे और इससे सारे जगत्का भी कल्याण हो।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १-३-१९२५