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८१. भाषण: पोरबन्दरके अन्त्यजोंकी सभामें

१९ फरवरी, १९२५

दीवान साहब, अन्त्यज भाइयो और बहनो,

आप सबको देखकर मुझे अत्यन्त हर्ष होता है। आप जो अन्त्यज अर्थात् ढेढ़, भंगी और चमार भ्रमवश नीचे वर्णमें माने जाते हैं, यहाँ आये हैं। आपसे मिलकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई है। आप जानते हैं कि अन्त्यजोंको उच्च वर्णोके हिन्दू नहीं छूते। वे लोग मानते हैं कि अन्त्यजोंको खानेके लिए जूठन दी जा सकती है। इस प्रकार आपके साथ कई प्रकारके अन्याय किये जाते हैं। कितने ही हिन्दू इन सभी अन्यायोंकी निवृत्तिके लिए बहुत प्रयत्न कर रहे हैं और कांग्रेसमें भी इस सम्बन्धमें बहुत चर्चा चल रही है और कोशिश की जा रही है।

किन्तु ये लोग अकेले क्या कर सकते हैं। इस कार्य में आपकी सहायता भी आवश्यक है। मुझसे बहुतसे हिन्दू कहते हैं, "आप तो इनका पक्ष लेते हैं। किन्तु आप देखें तो कि ये लोग कैसे हैं। ये लोग मुरदार माँस खाते हैं और ये नहाते-धोते भी नहीं हैं। इनको देखकर मतली होती है। इनके रीति-रिवाज गन्दे हैं। हम इनको कैसे छुएँ?"

इसमें कुछ तो सच है ही। इसमें जितनी सचाई है उसपर आपको ध्यान देना चाहिए। जो बातें खराब हों, वे आपको छोड़ देनी चाहिए और अपने सुधारमें स्वयं योग देना चाहिए। जो खुद प्रयत्न नहीं करता, ईश्वर भी उसकी सहायता नहीं करता। इसलिए मैं आपसे कहता हूँ कि आप स्वयं प्रयत्न करें। आप प्रात: चार बजे जगें, मुँह-हाथ धोएँ, आँखोंसे मैल साफ करें और भगवानका नाम जपें। स्मरण कैसे करना चाहिए, यह पूछे तो मैं कहूँगा कि आप रामका नाम लें। कान्हा या कृष्ण कहें तो वह भी ठीक है। किन्तु राम-नाम सबसे सुगम है। आप भगवानसे भीख माँगें, 'हे भगवान तू हमें अच्छा बना।' आप कई दिन बीत जाने पर भी नहाते नहीं है, यह ठीक नहीं है। नहाना तो प्रतिदिन चाहिए। मजूर कामसे लौटकर रातको नहा ले। आप चोरी भी न करें। अपने बच्चोंको साफ रखें। आप इन्हें साफ नहीं रखते, इसमें आप सबका दोष है। शालाके पण्डितजी बेचारे क्या करें? तीसरी बात यह है कि आप शराब न पीयें। शराब पीकर मनुष्य पशु बन जाता है। आप गला-सड़ा माँस न खायें। सच तो यह है कि आपको माँस ही नहीं खाना चाहिए। रोटी और दूध मिल जाये तो क्या उससे आपका काम नहीं चल सकता? जो लोग कपड़ा बुनना जानते हैं, वे कपड़ा बुनते रहें। आप सूत न कातते हों तो मैं उसे बर्दाश्त कर सकता हूँ; लेकिन ये सारी बुराइयाँ बर्दाश्त नहीं की जा सकतीं।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ७