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भाषण: बढवान कैम्पकी सभामें

कारण स्वार्थ है। मैं जब शिवलालभाईका पुण्य स्मरण करता हूँ तब सोचता हूँ कि इस व्यक्तिसे हमारा कितना स्वार्थ सधता था। यदि हम उनकी याद कायम रखना चाहते हों तो हमें उनकी जगह ले लेनी चाहिए। हमें यह संकोच नहीं होना चाहिए कि हम उनसे आगे कैसे बढ़ेंगे। यदि हम पुरखोंकी वसीयतमें कुछ भी वृद्धि न करें तो यह शर्मकी बात होगी। जो अपने पुरखोंकी सम्पत्तिमें थोड़ी बहुत भी वृद्धि कर पाता है वही सच्चा उत्तराधिकारी कहा जा सकता है। शिवलालभाईकी इस सम्पत्ति में वृद्धि करना हमारा कर्तव्य है। यह नहीं हो पाया है, इसका मुझे दुःख होता है।

मेरी अभिलाषा तो यह है कि खादीका काम सब लोग करें और वह गाँवगाँव में फैले। जबतक चरखा हर गाँवमें नहीं पहुँचता और जबतक सब लोग खादी नहीं पहनने लगते तबतक यहाँ शुद्ध स्वराज्यकी स्थापना होनी कठिन है। अभी हिन्दुओं और मुसलमानोंके हृदय एक नहीं हुए हैं। यदि हिन्दुओं और मुसलमानोंको अपने हृदय एक करने हैं तो दोनोंको चरखा चलाना आरम्भ कर देना चाहिए। अन्त्यजोंका प्रश्न भी खादीके अन्तर्गत आता है। अन्त्यजोंको लेकर बढवानमें हलचल मच गई है। क्यों मच गई है, यह मेरी समझमें नहीं आता। यदि हम खादीको सब लोगोंमें फैलाना चाहते हों तो हमें अन्त्यजोंको गले लगाना होगा। हिन्दुस्तानकी प्रतिष्ठा मुसलमानों और अन्त्यज बुनकरोंपर ही निर्भर है। बुनकरोंका संगठन किये बिना मनपसन्द खादी नहीं मिल सकती। मैं वाँकानेरसे आया हूँ। वहाँ ३०० मुसलमान बुनकर हैं। वे बहुत अच्छा कपड़ा बुनते हैं। किन्तु उनमें हाथ-कता सूत बुननेवाले केवल दो या तीन ही हैं। यदि हम दूसरोंसे भी खादी बुनवाना चाहते हैं तो हम सबको सूत कातना आरम्भ कर देना चाहिए। जो बहनें पैसेके लिए सूत कातती हैं हम उनसे दूसरी कमाई छुड़वाकर सूत नहीं कतवाना चाहते। जिनको एक पैसा भी नसीब नहीं है हम उन्हींसे सूत कतवाना चाहते हैं। जिस देशमें लोगोंको रूखी रोटियाँ और मटमैला नमक ही खानेको मिलता है, वहाँ चरखा कामधेनु है। इतना यज्ञ करना अनिवार्य है। यह यज्ञ व्यवस्थित रूपसे चलता रहे तो अच्छा हो।

आप कातनेका काम छोड़कर बुनाईका काम हाथमें न लें। यदि बारीक सूत जरूरी हो तो वह अपने हाथसे ही कातना पड़ेगा। बारीक सूतके अभावमें हम अपने सुकुमार भाई-बहनोंको क्या देंगे? आप एक सेर सूतकी बुनाई छ: आना या आठ आना देंगे, किन्तु आपको कोई भी छ: आनमें चालीस नम्बरका सूत कात कर न देगा।

यदि आप शिवलालभाईकी याद कायम रखना चाहते हैं तो आपको उनका काम जारी रखना पड़ेगा। खादीके प्रति स्नेह ही शिवलालका प्रथम और अंतिम काम था। उन्होंने इसमें बहुत रुपया भी लगाया। अब यदि हम उनके कार्यकी दिशामें कुछ भी न करें तो यह हमारे लिए शर्मकी बात होगी।

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ७