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भाषण: बढवानके बाल-मन्दिरमें

दिन ईश्वर सशरीर वहाँ आकर मुझे अपने हाथसे रुपया दे गया। एक दिन एक मोटर आकर खड़ी हुई उसमें से एक सज्जन [१] जिन्हें मैं पहचानता भी नहीं था, उतरकर आये और बोले, मुझे १३,००० रुपये देने हैं। क्या आप ले लेंगे? वे दूसरे दिन फिर आये और १३,००० रुपयके नोट देकर चले गये। यह सत्याग्रह आश्रम आज भी मौजूद है। मुझे तो अपने सत्याग्रहपर आरूढ़ रहकर अहमदाबादमें जमे रहना ही था। आज अहमदाबादके लोग मेरे साथ हैं। वे सब मेरे पास आते हैं और मुझे उन सबकी सहानुभूति प्राप्त है। इसका कारण केवल यह है कि मैंने उन्हें प्रेमकी डोरीसे बाँध लिया था और मुझे यह विश्वास था कि अहमदाबादसे ही अपने प्रेमका बदला मुझे मिलेगा। फूलचन्द भी मेरी ही तरह आसन लगाकर जम जानेवाले मनुष्य हैं। वे बढवानको क्यों छोड़ेंगे? चाहे भूखों ही मरना पड़े तो भी उन्हें तो यहाँसे डिगना ही नहीं चाहिए। यदि वे रोष या दुराग्रहवश ऐसा कुछ करेंगे या आपको कटुवचन कहेंगे तो यह पाप होगा। यदि उनके शब्द प्रेममें पगे होंगे तो आपका हृदय पसीज जायेगा। उनके व्यवहारके मूलमें क्या भाव है, यह तो ईश्वर ही जाने। उनका भाव जैसा होगा, परिणाम भी वैसा ही होगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ८-३-१९२५

८७. भाषण: बढवानके बाल-मंदिरमें[२]

२१ फरवरी, १९२५

चाँदीका यह ताला, कुंजी और कन्नी, मुझे अपने साथ ले जानी हैं। इन चीजोंको माटीका स्पर्श भी नहीं हुआ है। धोराजी बालाभाईने जो गिन्नियाँ मुझे दी हैं, मैं वे गिन्नियाँ फूलचन्दभाईको दे दूँगा। चाँदीकी ये चीजें और ये गिन्निया कुछ अर्थ रखती हैं। इस देशमें अनेक प्रकारके काम हो रहे हैं। किसे पता, उनके अन्दर कितना सत्य, कितनी कुरबानी, कितनी भावना है? मैं सिर्फ इतना जानता हूँ कि आज देशकी बहुत थोड़ी संस्थाओंमें आत्मा और जीवन है। एक अंग्रेज कविने स्वर्गका वर्णन करते हुए कहा है---स्वर्गके दरवाजेपर पीटर बैठा है और उसकी चाबी सोनेकी नहीं, लोहेकी है। इसका खुलासा करते हुए दूसरा कवि कहता है--स्वर्गका दरवाजा खोलना सहल काम नहीं है, वह सोने की चाबीसे नहीं खुल सकता; क्योंकि सोना मुलायम होता है। लोहा सख्तसे-सख्त धातुओंमें से एक है। इसलिए वह लोहेकी चाबीसे ही खुल सकता है।

किसी बातका करना यदि बहुत मुश्किल होता है तो उसके लिए हम काठियावाड़में कहते हैं--लोहेके चने चबाना। सो ऐसी संस्थाओंकी सुव्यवस्था लोहेके चने

 
  1. अम्बालाल साराभाई।
  2. काठियावाड़की यात्रामें गांधीजीने बढवानके बाल-मन्दिरका उद्घाटन किया। चाँदीके तालेको चाँदीकी कुंजीसे खोला। इसीलिए उन्होंने अपना भाषण चाँदीके ताले-कुंजीके उल्लेखसे ही शुरू किया।