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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

चरित्र-बलसे बालकोंको आकर्षित करिये। ऐसा होनेपर ही मेरा यहाँ आना और इस भवनको खोलना सार्थक कहलायेगा।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, ८-३-१९२५

८८.टिप्पणियाँ

उत्कलमें खादी

उत्कल अर्थात् उड़ीसाके विषयमें श्री शंकरलाल बैंकर कलकत्तासे लिखते हैं:[१]

उत्कलके बराबर कंगाल प्रान्त दूसरा नहीं है। उसमें खादीका काम तो सबसे ज्यादा हो सकना चाहिए। परन्तु इस पत्रसे मालूम होता है कि वहाँ काम दूसरी सभी जगहोंसे कम हो रहा है। इसका कारण सभी जानते हैं। जहाँ लोगोंको खानेपीनेकी कमी है, वहाँ काम करनेकी शक्ति और उत्साहका लोप हो जाता है। यदि वहाँ कार्यकर्ता मिल जायें तो यह आशा की जा सकती है कि उत्कल सबसे आगे बढ़ जायेगा।

सूत बनाम खादी

एक सज्जन लिखते हैं: "आपके पास हाथकते सूतको खरीदकर भेजनेकी अपेक्षा क्या यह अधिक ठीक न होगा कि हम उतनी ही खादीका पैसा आपको भेज दें और खादी भी पहनें?" इस प्रश्नमें थोड़ी-सी गलतफहमी है। कांग्रेसकी माँग इन दो में से एककी नहीं, दोनों बातोंकी है। पहली बात तो यह है कि हरएक आदमीको २,००० गज हाथकता सूत खुद कातकर या किसीसे कतवाकर हर माह भेजना है; और दूसरी बात यह है कि हर एकको खादी पहननी है। इसलिए विकल्प तो कोई है ही नहीं---दोनों बातें अनिवार्य हैं; केवल कातनेवाला कांग्रेसका सदस्य नहीं हो सकता और न केवल खादी पहननेवाला ही। और यही ठीक भी है। कातनेको सबपर लागू करके हम खादीका उत्पादन बढ़ायेंगे और खादी पहनना सबपर लागू करके हम खादीकी खपत बढ़ायेंगे। इस प्रकार हिन्दुस्तानकी गरीबी और भुखमरी मिट सकेगी।

एक बहनकी कठिनाई

एक सज्जन लिखते हैं कि मैंने एक बहनको खादी पहननेके लिए समझाया। उन्होने कहा, "यदि मैं खादी पहनने लगूँ तो मेरे पति मिलके कपड़े पहननेवाली किसी स्त्रीपर मोहित होकर चरित्र भ्रष्ट न हो जायेंगे?" ऐसे जवाबकी आशा मैं किसी पवित्र बहनसे नहीं रख सकता। पर जब यह सवाल पूछा ही गया है तब

 
  1. पत्र यहाँ उद्धृत नहीं किया गया है; इसमें उत्कल प्रदेशमें खादी प्रचार कार्यका ब्यौरा था।