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टिप्पणियाँ

उसका विचार कर लेना उचित है। अपनी पत्नीके सादगीका अवलम्बन करनेपर अथवा स्वधर्म-पालन करनेपर यदि किसी पतिके चरित्रभ्रष्ट होनेकी सम्भावना हो तो उसके विषयमें पवित्र स्त्रीको चिन्ता नहीं करनी चाहिए। जिस पुरुषकी पवित्रता किसी अन्यकी पत्नीके लिबासको देखकर भंग हो सकती हो तो उसकी पवित्रतामें क्या सार है? लिबासके फेरफारसे जो पति भ्रष्ट हो सकता है वह क्या किसी अधिक रूपवती स्त्रीको देखकर भी नहीं गिर सकता?

पर मेरा अनुभव उक्त बहनकी बातसे उलटा है। मैं ऐसे सैकड़ों पतियोंको जानता है जो अपनी पत्नियोंके खादी पहननेसे प्रसन्न हए हैं। उनके घरका खर्च कम हुआ है और खादी धारण करनेवाली अपनी पत्नीके प्रति उनका प्रेम बढ़ा है। यह भी हो सकता है कि इन बहनको वास्तवमें खादी पहनना ही नहीं था और इसलिए अनजानमें ऐसा अनुचित विचार उनके मनमें उठ आया। ऐसी बहनोंसे तो मेरी यह प्रार्थना है कि उन्हें दृढ़तापूर्वक खादी पहननी चाहिए और समझना चाहिए कि श्रृंगार लिबासमें नहीं, बल्कि पवित्रतामें है और लिबास श्रृंगारके लिए नहीं है बल्कि सर्दी-गर्मीसे शरीरकी रक्षा करने और बदन ढँकनेके लिए है।

हम क्या करें!

मुझे जेतपुर [काठियावाड़] में वहाँके निवासी दो सज्जनोंका नीचे लिखा हुआ पत्र मिला था:

आपका चरखेका सिद्धान्त हमें हृदयसे स्वीकार है। परन्तु वर्तमान समय ही ऐसा विकट हो गया है कि आजीविकाके लिए जो काम रोज ही करने पड़ते हैं, वे इसके मार्गमें बहुत बड़ी बाधा बने हुए हैं। इससे मंजिलपर पहुँचनमें असफल हो जाना अचरजकी बात नहीं है। अनुभवसे तो हम केवल इतना ही देख सके है कि सच्ची राहको भुलाकर दाँव-पेच, प्रपंच, दगा इत्यादिसे रुपया पैदा करना और गृह-संसार चलाना रूढ़ हो गया है। यदि इसमें सफल न हों तो नौकरीके लिए भटकना पड़ता है। इससे हृदयबल घट गया है और यही सबब है कि निश्चित लक्ष्य चूक जाता है।

इस रूढिको बदल देनमें हमारी मुश्किलें ये हैं: खेती करनेसे सब बातें हल हो सकती हैं; किन्तु धनाढ्यतामें पले हुए होने के कारण शरीरके बलका ह्रास हो गया है; यहाँतक कि जिन्दगी-भर उस सामर्थ्य और हिम्मतके लौटनकी आशा नहीं हो सकती।

किसानोंकी संख्या बहुत है। वे अपना काम चला लेते हैं। लेकिन उन्हें ज्ञान प्राप्त करने के साधन ही नहीं मिलते। इसलिए आज तो वे भी अधोगतिको प्राप्त होते जा रहे हैं। उनके बाद, हम-जैसे अर्धदग्ध मनुष्योंकी संख्या अधिक है। उनके लिए क्या मार्ग होगा? हम यह किस प्रकार जान सकते हैं? यदि कभी आपके सत्य सिद्धान्तोंके अनुसार कार्य करनेकी कोशिश करते हैं तो हम-जैसे शक्तिहीन मनुष्योंको हर प्रकारके साधनोंको प्राप्त करनेके लिए दूसरोंकी मदद लेने की जरूरत पड़ती है। यदि ऐसी मदद प्राप्त करना