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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एक अच्छा पत्र लिखकर मुझे भेज देना। मैं उसे उनको भेज दूँगा।

मैं तुम्हारे पत्रकी भाषा देखना चाहता हूँ। तुम उन तीनों सज्जनोंसे फिर मिले थे? शहरके लोग तुम्हारा साथ देंगे तो बहुत अच्छा होगा।

बापूके आशीर्वाद

मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २८२५) से।

सौजन्य: शारदाबहन शाह

१०३. भाषण: विवाहोत्सवपर[१]

२५ फरवरी, १९२५

प्रार्थनाका समय आशीर्वाद देनेके लिए उपयुक्त समय है। इससे पूर्व दो अवसर आ चुके हैं जब आश्रममें पले-बढ़े युवकों और युवतियोंके विवाह किये गये थे। हममें से बहुतेरे उन अवसरोंके महत्त्वको भी नहीं समझ सके थे। आश्रममें कुमार अथवा विवाहित जितने भी लोग आते हैं वे सभी ब्रह्मचर्यका पालन करना चाहते हैं और जिस आश्रमका हेतु सभीको ब्रह्मचर्यके पालनकी प्रेरणा देता है, उस आश्रममें विवाह कैसे सम्पन्न किया जा सकता है, यह प्रश्न सभीके मनमें उठना स्वाभाविक है। फिर भी यहाँ तीन विवाह करने पड़े हैं। यों आश्रममें नियम कड़े रखनेपर भी हम संयमके पालनमें असमर्थ रहे हैं। युवकों और युवतियोंको ब्रह्मचर्यकी शिक्षा देना आसान बात नहीं है। अवश्य ही प्रौढ़ लोग भी ब्रह्मचर्यका पालन समुचित रूपसे नहीं कर सकते। यदि मनुष्य किसी ध्येयको प्राप्त करना चाहता हो तो उसके मनमें उसके लिए तीव्र लगन होनी चाहिए। यह विषय इतना गहन है कि मैं इसमें ज्यों-ज्यों उतरता जाता हूँ त्यों-त्यों डर लगता है। मुझे इसके सौन्दर्यका भी उतना ही अधिक अनुभव होता जाता है और मैं तो पात्र भर-भरकर यह अनुभव-रस पी रहा हूँ।

हम आश्रममें बच्चों और नवयुवकोंको रखते हैं। किन्तु किसीसे जबरदस्ती ब्रह्मचर्यका पालन नहीं कराया जा सकता। इसलिए कभी-कभी ऐसी स्थिति आ जाती है कि विवाह अनिवार्य हो जाता है। ऐसे तीन अवसर आ चुके हैं। इसलिए मैंने इस सम्बन्धमें अपने मनको समझानेके लिए उनके साथ जबरदस्ती न करना तय किया। विवाहकी विधि आश्रमकी सीमाके बाहर सम्पन्न की जानी चाहिए। जगतको और आत्माको धोखा न देकर विवाह कर लेना चाहिए; और फिर आश्रममें बैठकर समस्त आश्रमका आशीर्वाद ले लेना चाहिए।

यदि ऐसा विवाह करना ही पड़े तो उसका उद्देश्य भोगवृत्तिका पोषण नहीं, किन्तु संयम है। यह बात विवाहित दम्पतीको बता देनी और आश्रमवासियोंको भी

 
  1. यह भाषण गांधीजीने अहमदाबादमें वल्लभभाई पटेलके पुत्र डाह्याभाई पटेलके विवाहके अवसरपर वर-वधूको आशीर्वाद देते हुए दिया था; देखिए "टिप्पणियाँ", २९-३-१९२५।