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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बोझ समाजपर--पाटीदार समाजपर---पड़ता है, इससे हमने उसको बचानेका विचार किया था।

मैं डाह्याभाईको बहुत समयसे जानता हूँ और यशोदाको भी जानता हूँ। दोनों में इस विवाहको संयमसे शोभित करनेकी क्षमता है, ऐसा मुझे लगता है। मुझे आश्रमवासियोंसे जो-कुछ कहना है, उसके अवसर बार-बार नहीं आ सकते। मैं ऐसे अवसरोंको ढूँढ-ढूँढ़ कर नहीं लाना चाहता। यह काम मेरा नहीं है। फिर भी ऐसे विवाहोंके अवसर आयें तो उनको सम्पन्न करानेसे संयममें ही वृद्धि होनेकी सम्भावना है। सम्भव है, मेरा यह विचार भ्रमयुक्त हो, फिर भी यदि ऐसी विधियाँ सम्पन्न करानेके अवसर आयेंगे तो मैं उनको सम्पन्न करानेसे पीछे नहीं हटना चाहता। साथ ही मैं यहाँके सब लोगोंसे यह चाहता हूँ कि आप सब ऐसे अवसरोंसे अधिक संयम पालना सीखें। इसीलिए हम सब ऐसे अवसरपर यहाँ इकट्ठे हुए हैं। हम प्रभुसे प्रार्थना करते हैं कि हमारी भावनाएँ पूरी हों, यहाँ ऐसे स्त्री-पुरुष उत्पन्न हों जिनका ध्यान ही इन बातोंकी ओर न हो, जिनका मन सन्तानोत्पत्तिकी ओर न जाये, जो संसार-भरके बालकोंको अपना बालक मानें और जो अपना समय दुःखी बालकोंकी सेवा करने में ही लगायें। डाह्याभाई और यशोदाको स्वयं स्वतन्त्र रूपसे सोचना चाहिए कि उनकी जिम्मेदारी कितनी बढ़ गई है। मुझे ऐसा लगता है मानो वे आज तो अपनी-अपनी स्वतन्त्रता तो खो ही बैठे हैं। किन्तु इसमें सौन्दर्य भी हो सकता है। वे सुखी हों, संयमी हों, उनमें त्यागभावका विकास हो और वे अपने-अपने मातापिताकी और हमारी प्रतिष्ठा बढायें, जिससे किसीको यह कहनेका अवसर न मिले कि आश्रममें ऐसा प्रसंग कैसे आया?

[गुजरातीसे]
महादेवभाईनी डायरी, खण्ड ७

१०४. निषेधादेश[१]

यह बात बिलकुल सच है कि मेरे कोहाट जानेसे वहाँके हिन्दू-मुसलमानोंके समझौतेका मामला, जिस हदतक वह अपने आपमें दोषपूर्ण होगा, फिरसे खुले बिना न रहेगा। पर जो समझौता हुआ है वह दबावसे हुआ है; क्योंकि मुकदमें चलाये जानेकी धमकी तो दोनों दलोंके सिरपर खड़ी ही थी। यह समझौता स्वेच्छासे नहीं हुआ है और दोनोंके मनका नहीं है। हिन्दू और मुसलमान दोनोंमें, जो कि रावलपिण्डीमें मौ० शौकत अलीसे और मुझसे मिले थे, ऐसा ही कहा था। परन्तु मेरे कोहाट

 
  1. मूल लेखमें गांधीजीने पहले वाइसरायके निजी सचिव तथा अपने बीच हुए तार-व्यवहारको उद्धृत किया था। ये तार शीर्षकों और पाद-टिप्पणियोंके रूपमें इसी खण्डमें पहले दिये जा चुके हैं। देखिए, "तार: वाइसरायके निजी सचिवको", ९-२-१९२५ तथा " तार: वाइसरायके निजी सचिवको", १९-२-१९२५।