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सच हो तो अमानुष

जानसे चाहे कुछ भी नतीजा निकले, उससे दोनों दलोंमें जो मनमुटाव है वह बढ़नेवाला तो हरगिज नहीं है। ऐसी हालतमें यदि मुझे अपने मुसलमान मित्रोंके साथ कोहाट जाने दिया जाता तो शान्ति स्थापनाका ध्येय, जिसका कि दावा मेरे बराबर ही वाइसराय साहब भी करते हैं, आगे बढ़ता। उस समय जब कि कोहाटमें आग धधक रही थी, मुझे वहाँ न जाने देना कुछ-कुछ समझमें आ गया था, परन्तु इस समयकी मनाई समझमें नहीं आती। कितने ही मित्रोंने मुझे सूचित किया कि बिना इजाजत लिये अथवा बिना खबर किये मुझे कोहाटके लिए रवाना होकर निषेधादेशके उल्लंघनकी सजा ओढ़ लेनी थी। पर यह मैं उसी हालतमें कर सकता था जब इस प्रकारके आदेशकी अवज्ञा करके मैंने जेल जानेकी ठान ली होती। पर मैं मानता हूँ कि देशमें आज ऐसी किसी कार्रवाईके योग्य वायुमण्डल नहीं है। इसलिए मैंने यह जोखिम नहीं उठाई। मुझे तो आशा है कि जिस सावधानीके साथ मैं ऐसी किसी भी कार्रवाईसे, जिससे सविनय अवज्ञाकी नौबत आ जानेकी सम्भावना पास आ सकती है, दूर ही रहा हूँ, सरकार उसकी कदर करेगी। और इस सावधानीमें भी मेरा हेतु यह है कि जहाँतक हो सके ऐसा कोई काम न किया जाये जिससे लोग अप्रत्यक्ष-रूपसे भी हिंसामें प्रवृत हो सकें। पर हाँ, ऐसा समय आये बिना न रहेगा जब अघटित परिणामों का लेशमात्र विचार किये बिना सविनय अवज्ञा करना मेरा धर्म हो जायेगा। मैं स्वयं नहीं जानता कि यह समय कब आ सकेगा या आवेगा भी। पर मैं इतना जरूर मानता हूँ कि वह आ सकता है। जब वह वक्त आ जायेगा तब मेरा खयाल है, मेरे मित्र मुझे पीछे हटते हुए नहीं देखेंगे। तबतक वे मुझे निबाह ले।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २६-२-१९२५

१०५. सच हो तो अमानुष

शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक-समितिकी ओरसे मुझे नीचे लिखा तार मिला है:

नाभासे हाल ही में बड़े अमानुषी अत्याचारोंकी खबरें आई हैं। कैदियोंको केश, दाढ़ी पकड़कर खींचा गया है और ऐसी मार मारी गई है कि वे बेहोश हो गये हैं। उनसे पानीमें गोते लगवाये गये हैं। बदनके भिन्न-भिन्न हिस्से लोहेके लाल गरम सींकचोंसे दागे गये हैं और उन्हें सिर नीचे और पाँव ऊपर बाँधकर लटका दिया गया है, जिससे कितने ही लोग मर भी चुके हैं। बहुतोंकी हालत चिन्ताजनक हो रही है। कितनों ही को सख्त जख्म पहुँचे हैं। कुछ जत्थोंको तो ता० १३-१४ को खाना ही नहीं दिया गया। बड़ी सनसनी फैल रही है। हालत निहायत गम्भीर है। तुरन्त कुछ उपाय करना जरूरी है।

मैं इस तारको छाप रहा हूँ, पर अफसोसकी बात है कि तुरन्त कुछ भी नहीं किया जा सकता है। निश्चय ही लोगोंकी हमदर्दी तो कैदियोंके प्रति है। मुझे इस