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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बातमें भी कोई शक नहीं कि विधानसभामें प्रश्नोत्तर भी होंगे; पर इससे उन दुखियोंको क्या तसल्ली मिलेगी। मैं तो यही चाहता हूँ कि यह विवरण अतिरंजित निकले और कर्मचारीगण द्वारा उपरोक्त अमानुषता बरतनेका अपराध न किया गया हो। मैं विश्वास करता हूँ कि जो भयंकर इल्जाम जेलके कर्मचारियोंपर लगाये गये हैं, नाभाके राज्याधिकारी उनका स्पष्टीकरण देंगे और निष्पक्ष तौरपर उनकी जाँच करावेंगे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, २६-२-१९२५

१०६. फिर वाइकोम

वे हिन्दू जो अस्पृश्यताको पाप मानते हैं, नीचे लिखे पत्रको पढ़कर बड़े क्षुब्ध होंगे:[१]

एक उन्नत बताया जानेवाला राज्य [२] प्रगतिशील विचारोंका विरोध करे तो यह उस 'उन्नत' राज्यके लिए लज्जाजनक है। नैतिक दृष्टिकोणसे तो प्रगतिशील लोगोंकी जीत हो गई है। यद्यपि यह खेदकी बात है कि कथित अस्पृश्यों द्वारा एक सार्वजनिक मार्गके उपयोगके विरुद्ध २२ सदस्योंने मत दिये; किन्तु यह जानकर सान्त्वना मिलती है कि २१ सदस्योंने हिन्दू सुधारकोंके प्रस्तावके पक्षमें अपना मत देकर उनके द्वारा ग्रहण की हुई स्थितिका समर्थन किया है। लेकिन पत्रकी सबसे दुःखजनक बात यह है कि सत्याग्रही निराश होते हुए जान पड़ते हैं। मुझे इससे आश्चर्य नहीं होता। लगातार सत्याग्रह करनेका उनका यह पहला अवसर है। फिर भी मैं उन्हें विश्वास दिला दूँ कि विजय सुनिश्चित है क्योंकि उनका उद्देश्य न्याय्य है और उनके साधन अहिंसात्मक हैं। उन्हें यह भी जान लेना चाहिए कि उन्होंने अपने कष्ट सहनसे संसारका ध्यान आकर्षित कर लिया है। आन्दोलन शुरू होनेसे पहले वाइकोमको कौन जानता था? उन्हें यह भी ध्यानमें रखना चाहिए कि वे युगों पुराने एक अन्धविश्वासके विरुद्ध लड़ रहे हैं। द्वेषकी लौहभित्तिको तोड़नेके प्रयत्नमें कुछ सुधारकोंका एक वर्षका कष्ट सहन कोई बड़ी बात नहीं है? अधीर होनेका अर्थ लड़ाई हार जाना है। उन्हें तो अन्ततक लड़ना होगा। इसके अतिरिक्त दूसरा मार्ग हो भी क्या सकता है? हिंसासे कोई कार्य सिद्ध न होगा। रूढ़िवादी लोग और भी अकड़ जायेंगे और शहीदोंके खूनसे उन्हें बल मिलेगा; क्योंकि यदि रूढ़िवादी घायल होते हैं तो सहानुभूति प्रबल रूपसे उनको ही प्राप्त होगी--चाहे उनका उद्देश्य अनुचित ही क्यों

 
  1. यह उद्धृत नहीं किया गया है। पत्रमें बताया गया था कि राज्यकी सरकारने स्थानीय विधान परिषद्में अस्पृश्यता-निवारण सम्बन्धी प्रस्तावको किस प्रकार विफल कराया; उसमें यह भी कहा गया था कि इसकी प्रतिक्रिया आम अशान्ति भी हो सकती है। उसमें यह प्रार्थना भी की गई थी कि यदि ऐसी अवस्थामें गांधीजी स्वयं वहाँ न जा सकते हों तो वे कमसे-कम एक वक्तव्य देकर सत्याग्रहियों के मनोबल और जनताके धैर्यको स्थिर रखनेमें सहायता अवश्य दें। "सत्याग्रहीकी कसौटी", १९-२-१९२५ भी देखिए।
  2. त्रावणकोर।