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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नियमको विवेकके इस युगमें पहले विवेक और व्यापक न्यायकी अचूक कसौटीपर कसना होगा। तभी उसपर संसारकी स्वीकृति माँगी जा सकती है। किसी भूलका समर्थन संसारके समस्त धर्मग्रन्थोंमें भी किया गया हो तो भी वह इस नियमसे मुक्त नहीं हो सकती। इस संकटमें मैं अहमदिया फिरकेके प्रति सहानुभूति प्रकट करता हूँ। यह कहना अनावश्यक है कि मैं इस मामलेके गुणावगुणोंके सम्बन्धमें अपना मत व्यक्त नहीं कर सकता। मेरा खयाल है कि आम लोगोंको इस मामलेके तथ्य मालूम नहीं हैं जिससे वे इसके गुणावगुणोंपर अपना मत स्थिर कर सकें। यह ऐसा दण्ड है जिससे मानवीय अन्तःकरणको चोट पहुँचती है। विवेक और हृदय किसी भी अपराधके लिए ऐसी यातनाका समर्थन नहीं करते--चाहे वह अपराध कितना ही जघन्य क्यों न हो।

टेढ़े प्रश्न

'एक हितचिन्तक' ने नीचे लिखी सतरें मेरे चिन्तनके लिए भेजी हैं:

'बाइबिल' को लोग ५६६ भाषाओं में पढ़ सकते हैं। पर उपनिषदों और 'गीता' को कितनी भाषाओं में पढ़ सकते हैं?

पादरी लोगोंने कितने कुष्ठालय खोले हैं और कितनी संस्थाएँ दलित और पीड़ित लोगोंके लिए खोल रखी हैं?

"आपने कितनी खोली हैं?"

ऐसे टेढ़े प्रश्न मुझसे अक्सर पूछे जाते हैं, 'एक हितचिन्तक' को जवाब देनेकी जरूरत है। पादरियोंके उत्साह, उमंग और त्यागके प्रति मेरे मनमें बड़ा आदर-भाव है। पर मैंने उन्हें यह बताने में कभी संकोच नहीं किया है कि उनके उत्साह, उमंग और त्यागका समुचित उपयोग नहीं होता। दुनियाकी हरएक ज़बानमें अगर 'बाइबिल'का तरजुमा हो जाये तो इससे क्या? पेटेंट दवाका विज्ञापन बहुतेरी भाषाओंमें किया जाता है, इसलिए क्या उसकी महत्ता उपनिषदोंसे बढ़ सकती है? कोई गलती अपने बहुल प्रचारके कारण सत्यका स्थान नहीं ग्रहण कर सकती, और न सत्य इसलिए मिथ्या हो सकता है कि उसपर किसीकी दृष्टि नहीं पड़ती। जिन दिनों 'बाइबिल' का उपदेश पूर्वकालीन ईसाई धर्मप्रचारक देते थे उन दिनों उसकी शक्ति आजसे कहीं अधिक थी। अगर 'एक हितचिन्तक' यह समझते हों कि 'उपनिषदों' की अपेक्षा 'बाइबिल' का अधिक भाषामें अनुवाद होना उसकी श्रेष्ठताकी कसौटी है तो कहना होगा कि उनको पता नहीं है कि सत्यका प्रसार कैसे होता है। सत्यका फल तभी मिल सकता है जब तदनुसार आचरण किया जाये। परन्तु यदि मेरा उत्तर पानेसे 'एक हितचिन्तक' को कुछ सन्तोष हो सकता है तो मैं उनसे खुशीके साथ कहूँगा कि हाँ, 'बाइबिल' की अपेक्षा 'उपनिषदों' और 'गीता' का अनुवाद बहुत कम भाषाओंमें हुआ है। मुझे कभी इस बातकी जिज्ञासा नहीं हुई कि उनके अनुवाद कितनी भाषाओंमें हुए हैं।

अब, दूसरे सवालके बारेमें भी, मुझे यह कबूल करना चाहिए कि पादरियोंने कुष्ठ चिकित्सालय तथा ऐसी बहुत-सी संस्थाएँ खोली है। मैंने एक भी नहीं। फिर