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टिप्पणियाँ

भी मेरी स्थिति अचल है। ऐसी बातोंमें मैं पादरियों अथवा और किन्हीं लोगोंसे प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहा हूँ। मैं तो जिस तरह ईश्वर राह दिखाता है उसी तरह नम्र भावसे मनुष्य-जातिकी सेवा करनेकी कोशिश कर रहा हूँ। कुष्ठालय इत्यादि खोलना मनुष्य-जातिको सेवाका एक साधन है और वह भी शायद सर्वोत्तम नहीं है। परन्तु ऐसी उच्च सेवाओंकी भी उच्चता उस अवस्थामें बहुत-कुछ घट जाती है जबकि उनके पीछे धर्मान्तर करनेका हेतु रहता है। वही सेवा सर्वोच्च होती है जो केवल लिए ही की जाती है। हाँ, यहाँ कोई मेरे आशयको गलत न समझ ले। जो पादरी निःस्वार्थ भावसे ऐसे कुष्ठालयमें सेवा करते हैं, उनका मैं आदर करता हूँ। यह कबूल करते हुए मुझे बहुत शर्म मालूम होती है कि हिन्दू लोग ऐसे निष्ठुर हो गये हैं कि दुनियाकी बात तो दूर, अपने देशके ही दीन-अनाथोंकी भी वे बहुत कम परवाह करते हैं।

एक वहम

बंगालके एक जमींदारने हिन्दू-मुस्लिम एकता, अस्पृश्यता और स्वराज्यके विषयमें मुझे एक बड़ी लम्बी चिट्ठी भेजी है। चिट्ठी इतनी लम्बी है कि प्रकाशित नहीं की जा सकती और उसमें कोई नई बात भी नहीं कही गई है। फिर भी नमूनेके तौरपर उसमें से एक वाक्य यहाँ पर देता हूँ:

पाँच सौ बरससे हिन्दुओंका और मुसलमानोंका सम्बन्ध दुश्मनोंका-सा रहा है। ब्रिटिशोंका राज्य होने के बाद एक नीतिके तौरपर हिन्दू-मुसलमान उस जातिगत द्वेषको भूल जानेपर मजबूर किये गये थे और अब उन दोनों जातियोंमें वैसी कटुता और दुश्मनी नहीं रही। लेकिन इन दोनों जातियोंके स्वभावका स्थायी-भेद अब भी मौजूद है। मेरा विश्वास है कि हिन्दू-मुसलमानोंका वर्तमान मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध ब्रिटिश राज्यके कारण ही है और नवीन हिन्दू धर्मकी उदारताके कारण नहीं।

मैं इसे सिर्फ एक वहम मानता हूँ। मुसलमानोंके राज्यमें दोनों जातियाँ आपसमें सुलह-सफाईके साथ रहती थीं। यह याद रखना चाहिए कि मुसलमानोंके राज्य-कालके पहले भी कितने ही हिन्दुओंने इस्लामको अंगीकार किया था। मेरा यह विश्वास है कि जिस प्रकार ब्रिटिश राज्य यहाँ न होता तो भी यहाँ ईसाई लोग होते ही, उसी प्रकार यदि मुसलमानोंका राज्य न हुआ होता तो भी यहाँ मुसलमान तो रहते। इस बातका कोई प्रमाण नहीं है कि ब्रिटिश राज्यकी स्थापनासे पहले यहाँ हिन्दू और मुसलमानोंमें झगड़ा रहता था। मेरा विश्वास है कि ब्रिटिशोंकी इस 'फूट डालकर शासन करनेकी' नीतिने हमारे मतभेदोंको और भी बढ़ा दिया है। और जबतक, इस नीतिके होते हुए भी, हम यह न समझ जायें कि हमें एक हो जाना चाहिए तबतक वह हमारे मतभेदोंको बढ़ाती ही रहेगी। लेकिन यह तबतक मुमकिन नहीं जबतक हम अधिकार और पदोंके लिए झगड़ते रहेंगे। पहल हिन्दुओंको ही करनी चाहिए।