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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भरूचाकी डायरी

यहाँ हम श्री भरूचाके कामका लेखा देते हैं:

मैं श्री दास्ताने और श्री देवके साथ पूर्वी खानदेशका दौरा कर रहा हूँ। दैनिक विवरण इस प्रकार है:

१३-२-१९२५, भुसावल: ३५० रुपये की खादी मुख्यतः वकीलोंको बेची और १२ बंगालो मन रुई इकट्ठी की।

१४-२-१९२५, जामनेर: १६/११ बंगाली मन रुई इकट्ठी की।

१५-२-१९२५, चालीसगाँव: ३१० रुपयेकी खादी वकीलोंको और ४५० रुपयेकी कपड़ा व्यापारियोंको बेची। एक बंगाली मन रुई इकट्ठी की।

१६-२-१९२५, पाचौरा: यहाँ १२ मन और ५ पक्का बंगाली मन रुई सिन्दूरनीमें इकट्ठी की।

१७-२-१९२५, आज हम यावलेमें हैं। श्री दास्ताने पश्चिमी खानदेशमें ३ दिन अर्थात् २३ तारीखतक और रहना चाहते हैं।

मैं श्री भरूचाके एक पत्रसे यह उद्धरण इस खयालसे दे रहा हूँ कि उससे दूसरे कार्यकर्त्ताओंको काम करनेकी प्रेरणा मिले। व्यावसायिक ढंग और सतत प्रयत्नके बिना सूत कातने और खद्दरके प्रचारमें सफलता मिलनी सम्भव नहीं है। मेरा अनुभव तो यह है कि जितना भी काम किया जाये उसकी प्रतिक्रिया तुरन्त होती है।

भारतकी दुर्दशा

इलाहाबाद कृषि संस्थानके श्री हिगिनबॉटमसे कर जाँच-समितिने इसी ६ तारीखको पूछताछ की थी। इस पूछताछके उत्तरमें उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण विषयोंमें अपनी यह दिलचस्प राय जाहिर की। मैं 'सिविल ऐंड मिलिटरी गज़ट' से चुनकर निम्न उद्धरण देता हूँ:

भारत बहुत गरीब देश है, फिर भी वह खेती सम्बन्धी कई बातोंमें संसारभरमें सबसे ज्यादा फिजूलखर्च देश है। देशमें जो हद दर्जेकी गरीबी है उसका कारण जमीनकी कमी या खतौके सामानकी कमी उतनी नहीं जितनी वैज्ञानिक ढंगसे खेती करनको। देशमें अलाभप्रद असंख्य पशु और धार्मिक भिखारी होनको वजहसे भारी आर्थिक शोषण होता है। देशमें खाद्य जुटानेके लिए और कामकी दृष्टि से जितने जानवरोंकी जरूरत है उसकी अपेक्षा यहाँ बहुत ज्यादा जानवर हैं। उनको काफी चारा नहीं मिलता, इसलिए वे कदमें छोटे और कीमतमें हल्के रह जाते हैं। भारतकी गाय सब देशोंकी गायसे कम दूध देती है; इसका कारण यह है कि यहाँ चारा कम है और जो निकम्मी गायें हैं, भारतीय उनको खतम करना नहीं चाहते। भारतमें दूधका उत्पादन करने में बहुत ज्यादा खर्च आता है और देशके ९० प्रतिशत पशु आर्थिक दृष्टिसे बोझ हैं।....