पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/२२९

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...लोग अत्यन्त कीमती खादको, जिसका मिलना मुश्किल है, जला रहे हैं। भारतमें कर लगानेकी गुंजाइश बहुत अधिक है, लेकिन लोगोंकी कर देनेकी वर्तमान सामर्थ्य बहुत कम है। जमीनपर करका भार जितना पड़ना चाहिए उसको अपेक्षा बहुत कम पड़ रहा है। भारतमें जब किसानको जमीन इतनी कम होती है वह आर्थिक दृष्टिसे लाभ नहीं दे सकती तो उसपर लगान भाररूप हो जाता है।

अलाभप्रद खातों (जमीनके टुकड़ों) को खतम करनेके लिए कानून बनानेकी जरूरत है। वर्तमान कानूनसे तो छोटे खातोंको प्रोत्साहन मिलता है। ऐसे बड़े खाते बहुत कम हैं जिनपर मेहनत बचानके लिए मशीनोंका इस्तेमाल किया जा सके। कानूनकी वर्तमान स्थितिमें सब लाभप्रद खाते अलाभप्रद हो रहे हैं। गाँवोंमें उद्योगोंकी उचित व्यवस्था नहीं है जिनमें फालतू लोग लग सकें। इसके अलावा बहुतसे लोगों और जानवरोंके लिए जो जमीनपर सिर्फ आधा वक्त ही काम कर सकते हैं; जमीनसे पूरी आजीविकाकी आशा करते हैं। इसका उपाय यही है कि गाँवों में स्त्रियों या पुरुषोंके लिए मौसमी उद्योग स्थापित करनेकी योजनाएँ बनाई जायें और उन उद्योगोंका विकास किया जाये जिससे जब खेतीमें उनके लिए कुछ काम नहीं होता तब वे कुछ समय लाभप्रद काममें लगा सकें।... जमींदार अपनी आमदनीको व्यक्तिगत समझता है और यह नहीं सोचता कि गाँवोंका सुधार करनमें उसका लाभ है। इसके अतिरिक्त काश्तकार और जमींदार हमेशा आपसमें लड़ते रहते हैं।

इन उद्धरणोंमें चार बातोंकी चर्चा की गई है। कीमती खादकी बरबादी, पशुओंकी चिन्ताजनक समस्या, अलाभप्रद खाते और किसानोंके लिए पूरे वर्ष धन्धेकी कमी। करके भारकी बात छोड़ भी दें तो भी इन सबसे जनसमुदायकी गरीबी बढ़ती है और इसलिए सब देशभक्तोंको इस सम्बन्धमें विचार करना उचित है। इनमें से प्रत्येक प्रश्नपर कारगर तौरपर कार्रवाई की जा सकती है। जिस देशमें गायकी पूजा की जाती हो, उसमें पशुओंकी कोई समस्या होनी ही नहीं चाहिए। किन्तु हमारी इस गोभक्तिने अज्ञानपूर्ण धर्मान्धताका रूप ले लिया है। हम जितने जानवरोंको रख सकते हैं उनसे ज्यादा जानवरोंको रखते हैं। इस तथ्यपर सबसे पहले विचार करना जरूरी है। मैं पहले ही कह चुका हूँ कि गोरक्षा समितियोंको यह प्रश्न अपने हाथमें लेना चाहिए। यह उनका उचित कर्तव्य है। अलाभप्रद खातोंका प्रश्न ऐसा है जिसके लिए हमें अपनी परिवार-व्यवस्थाको बदलनेकी जरूरत है। खादकी बरबादीका प्रश्न हल करनेके लिए खेतीकी सच्ची शिक्षा देनेकी जरूरत है। और लाखों स्त्रियों और पुरुषोंके ६ महीने बेकार रहनेका प्रश्न केवल चरखेसे ही हल किया जा सकता यह साफ है कि सरकारसे लड़नेके साथ-साथ हमें विज्ञानका अध्ययन करना चाहिए और श्री सैम हिगिनबॉटम द्वारा उठाय गये सवालोंपर विचार करना चाहिए।

[अंग्रजीसे]
यंग इंडिया, २६-२-१९२५