११४. पत्र: प्रभाशंकर पट्टणीको
फाल्गुन सुदी ६, सं० १९८१ [२८ फरवरी, १९२५]
आपका पत्र मिल गया है। मेरा कार्यक्रम इस प्रकार है:
आश्रम ४ मार्च
बम्बई ५ मार्च
मद्रास ७ मार्च
वाइकोम ८ मार्च
इसके बादका कार्यक्रम वाइकोममें तय किया जायेगा। आश्रममें २६ मार्चको वापस पहुँचनेका विचार है। मुझे १ अप्रैलको बोटाद जाना है और उसके बाद मढडा पालिताना, सिहोर आदिका कार्यक्रम है।
अब तो मैं वाइकोमसे बम्बई लौटनेके बाद ही जाम साहबसे मिल सकूँगा, बशर्ते कि वे बम्बई आ जायें।
इसके साथ भाई फूलचन्दका पत्र है। उनके सम्बन्धमें मेरे मनमें बहुत ऊँचा भाव है। अच्छेसे-अच्छे लोग भी सुनी-सुनाई बातोंसे कैसे भ्रमित हो जाते हैं, इसका यह एक उदाहरण है। आप भाई फूलचन्दको क्षमा तो कर ही देंगे, मैं यह माने लेता हूँ। जब भाई फूलचन्दने आपसे क्षमा माँगनेका विचार स्वयं प्रकट किया तब मैंने उन्हें यह सुझाव दिया था कि वे यह पत्र मुझे भेज दें।
मोहनदासके वन्देमातरम्
मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ३१९७) से।
सौजन्य: महेश पट्टणी
११५. पत्र: फूलचन्द शाहको
फाल्गुन सुदी ६, १९८१ [२८ फरवरी, १९२५]
तुम्हारा पत्र मिला। तुमने पट्टणी साहबको जो पत्र लिखा था, वह मैंने उनको भेज दिया है। तुम्हारा दूसरा पत्र मिल गया है। मैं फुरसतसे उसका उत्तर नामोंका उल्लेख किये बिना सार्वजनिक रूपसे दूँगा।
हमें शराबियोंके घर खाना-पीना नहीं चाहिए, इस नियमका औचित्य मेरी समझमें नहीं आया है।
१. देखिए पिछला शीर्षक।
२. देखिए "जहाँ मद्यपान हो, वहाँ क्या करें?", २२-३-१९२५।