जो लोग खादी नहीं पहनते, क्या मैं उनके घर नहीं जाता? तुम्हारी जैसी मान्यता है वैसा मैं करूँ तो उससे शराबबन्दीमें कोई खास मदद नहीं मिलती।
किन्तु मैं मानता हूँ कि यदि हम शराबियोंके घर जानेपर भी शराब न पियें तो इससे सहायता मिलती है। यदि हम इस तरह व्यवहार न रखना चाहें तो हमें जन-समाजको ही त्याग देना चाहिए।
बापूके आशीर्वाद
मूल गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० २८७०) से।
सौजन्य: शारदाबहन शाह
११६. पत्र: घनश्यामदास बिड़लाको
फा० शु०६, १९८१ [फरवरी २८, १९२५]
आपके लीये जो खास चरखा बनवा रहा था, बनकर आ गया है। देखनमें तो सुंदर है हि है। मैंने और भाई महादेवने चलाकर भी देखा है। अच्छा च है। मैं नहिं जानता कोई आपके वहां उसको अच्छी तरह बिठा सकेंगे। मुझको लीखिये कैसे चलता है। एक चरखा और भी भेजनेका मैंने चि० मगनलालको कहा था। मैं नहिं जानता कि वह मील गया है या नहिं। आपको मैंने एक पत्र इसके पेश्तर लीखा था मीला होगा। मैं वाइकम जा रहा हुं।
आपका
मोहनदास गांधी
मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० १६०६) से।
सौजन्य: घनश्यामदास बिड़ला।