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११७. काठियावाड़के संस्मरण---१

प्रजा प्रतिनिधि-मण्डल

तारीख १५ से २१ तक मैं काठियावाड़में घूमा। उस अवधिके संस्मरण मेरे दिलमें हमेशा ताजा बने रहेंगे। राजकोटके ठाकुर साहबके स्वतन्त्रता-प्रेमपर मैं मुग्ध हो गया। प्रजा प्रतिनिधि-मण्डलकी उपयोगिताके बारेमें मुझे कुछ शक था, लेकिन उसकी एक बैठकमें तीन घंटे बैठनेके बाद मेरा वह शक भी जाता रहा। यह तो भविष्यकी बात है कि यह मण्डल आखिर कितना उपयोगी साबित होगा। लेकिन यह कह सकते हैं कि वह आज भी उपयोगी है। उसे अधिक उपयोगी बनानेका दारोमदार प्रतिनिधियोंपर ही है। प्रतिनिधियोंको अपने विचार प्रकट करनेकी पूर्ण स्वतन्त्रता है और वे उसका पूरा-पूरा उपयोग करते हुए भी देखे गये। किसीको भी यह खयाल नहीं होता था कि माननीय ठाकुर साहबको क्या पसन्द होगा, क्या नहीं। प्रतिनिधि उन विचारोंको भी प्रकट करते थे, जो ठाकुर साहबको अप्रिय मालूम हो सकते थे।

सब कामकाज गुजरातीमें होनेके कारण बड़ी शोभा देता था। अंग्रेजी व्याख्यानोंमें जो कृत्रिमता, आडम्बर इत्यादि पाये जाते हैं, यहाँ वे देखनेको भी न मिले। वहाँके कुछ व्याख्यान तो बड़े प्रभावपूर्ण और अच्छे कहे जा सकते हैं। व्याख्यान लम्बे नहीं थे और सामान्य तौरपर सब लोग वही बातें कहते थे, जो जरूरी थीं। यह मण्डल अपनी दलील करनेकी शक्तिमें, मर्यादाकी रक्षा करने में और बाकायदा काम करने में किसी भी दूसरे प्रतिनिधिमण्डलसे कम है, यह मैं हरगिज नहीं कहूँगा।

मद्यपान-निषेध

इस मण्डलमें मद्यपान-निषेधपर ही मुख्यतः चर्चा हुई थी। प्रतिनिधि-मण्डलने सर्वसम्मतिसे यह प्रस्ताव पास किया कि शराबकी दुकानें और शराबका बनना राज्यकी तरफसे बन्द कर दिया जाये। प्रतिनिधि लोग यह जानते थे कि ठाकुर साहबका मत इसके विरुद्ध है तो भी प्रतिनिधि-मण्डलने इसे वहाँ दूसरी बार पेश किया था।

विचार-दोष

माननीय ठाकुर साहबने स्वयं प्रतिनिधियोंके सामने अपनी बात पेश की। इसलिए उनके विचार भी जाने जा सके। उनकी दलील यह थी कि यदि शराबकी दुकानें बन्द कर दी जायेंगी तो यह व्यक्तिके स्वातन्त्र्यको हानि पहुँचाना होगा। मेरा खयाल है कि इसमें बड़ा भारी विचार-दोष है। यह समझना मुश्किल है कि यदि राज्यकी तरफसे शराबकी दुकानें बन्द कर दी जायें तो इससे व्यक्तिके स्वातन्त्र्यकी क्या हानि होगी? प्रजाकी माँग यह नहीं थी कि शराबका पीना जुर्म माना जाये।