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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उनकी माँग तो यह थी कि राज्यमें शराबका बनना और बेचना बन्द कर दिया जाये। व्यक्ति या समाज जिस चीजको दोषयुक्त मानता है, उसे बनाना या बेचना समाज या व्यक्तिके लिए लाजिमी नहीं है। शराबसे होनेवाली हानिको तो सभी जानते हैं। जिस प्रकार चोरी करनेका स्वातन्त्र्य नहीं मिल सकता उसी प्रकार शराब बनाने और बेचने का स्वातन्त्र्य भी नहीं मिल सकता। जो लोग बिना शराबके नहीं रह सकते, वे चाहें तो उस राज्यको छोड़ दें। व्यक्तिके स्वातन्त्र्यके पूजक देशोंमें भी ऐसी रोक-टोकके दृष्टान्त बहुत पाये जाते हैं। स्वतन्त्रता और स्वच्छन्दता दोनों एक ही नहीं है। किसी भी व्यक्तिको स्वच्छन्द होकर काम करनेका अधिकार ही नहीं है। जहाँ ऐसा अधिकार हो वहाँ स्वतन्त्रता देवीका निवास सम्भव नहीं है। प्रत्येक मनुष्यको उतनी ही स्वतन्त्रताके उपभोग करनेका अधिकार है जिससे किसी दूसरेको नुकसान न पहुँचे। अंग्रेजीमें विधिशास्त्रका एक सिद्धान्त यह है कि प्रत्येक मनुष्यको अपनी सम्पत्तिका उपयोग ऐसा करना चाहिए कि उससे किसी दूसरेकी हानि न हो। मुझे अधिकार है कि मैं अपनी सारी जमीन खोद डालूँ। लेकिन मैं उसे इस तरह नहीं खोद सकता कि उससे मेरे पड़ौसीके घरकी नींव ही कमजोर हो जाये। प्रजाका कोई वर्ग यदि शराब पीता हो तो उसका नतीजा केवल पीनेवालेको ही नहीं भुगतना पड़ता, उसके बाल-बच्चों और पड़ौसियोंको भी भुगतना पड़ता है। अमरीकाने शराबकी दुकानें और शराब बनाने के कारखाने बन्द कर दिये। इससे वहाँ व्यक्तिके स्वातन्त्र्यका लोप नहीं हो गया। इस समय जब शराबके व्यापारके विरुद्ध सारी दुनियामें हलचल हो रही है, यदि राजकोट-नरेश शराबके लिए व्यक्तिके स्वातन्त्र्यका तर्क पेश करें तो यह बड़े दुःखकी बात है।

प्रजामत

यदि यह मान भी लें कि शराबके व्यापारको बन्द करनेसे व्यक्तिके स्वातन्त्र्यकी हानि होती है तो भी यह सिद्धान्त तो सर्वमान्य है कि जहाँ स्पष्टतया प्रजाका एक ही मत हो वहाँ राजाका धर्म है कि वह उसीका वशवर्ती होकर रहे। प्रजा प्रतिनिधिमण्डल में ऐसा कोई भी न था जो शराबके व्यापारको बन्द न करवाना चाहता हो। ऐसे भी प्रमाण मौजूद हैं कि स्वयं शराब पीनेवाले ही उसे बन्द कराना चाहते हैं। उनके कुटुम्ब त्रस्त हैं। ऐसे विषयोंमें भी यदि राजकोटके ठाकुर साहब प्रजामतका आदर न करें तो यह बड़े दुःखकी बात होगी। जिस नरेशने प्रजा प्रतिनिधि-मण्डल बनानेमें पहल की है उनसे मैं यह आशा जरूर रखता हूँ कि वे शराबके लिए दूषित सिद्धान्तोंके कायल होकर प्रजामतका तिरस्कार नहीं करेंगे और शराबके व्यापारको बन्द करके गरीबोंकी दुआ लेंगे।

नियमितता

राजकोटके ठाकुर साहब नियमितताके पुजारी हैं। सब काम नियत समयपर करते हैं और दिये हुए और मुकर्रर किये हुए समयकी पाबन्दी स्वयं भी बड़ी सजगतासे करते हैं और दूसरोंसे भी कराते हैं। वे (डिसिप्लिन) अनुशासनके भी पुजारी