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स्टेनकोनोवके प्रश्नोंके उत्तर

हैं। वे मानते हैं कि हमारा बड़ा भारी दोष अनुशासनका अभाव है। इसमें बहुत कुछ सत्यांश है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। नियम और अनुशासनके अभावके कारण ही प्रजा अपनी शुभेच्छाओंको पूरा नहीं कर पाती।

[गुजरातीसे]
नवजीवन, १-३-१९२५

११८. स्टेनकोनोवके प्रश्नोंके उत्तर

[२ मार्च, १९२५]

खेद है कि आज मेरा मौन-व्रत है। लेकिन आप जो कुछ कहना चाहते हों, कह सकते हैं। मैं उसका जवाब लिखकर दूँगा। मैं 'यंग इंडिया' के सम्पादन-कार्यमें बहुत व्यस्त हूँ परन्तु कुछ मिनट निकालूँगा।

चरखेका प्रभाव

मैं ऐसे व्यक्तिपर इसके प्रभावकी दृष्टिसे उतना नहीं देखता जितना राष्ट्रपर होनेवाले प्रभावकी दृष्टिसे देखता हूँ। कताईका प्रभाव व्यक्तिपर भले ही साफ दिखाई न पड़े किन्तु राष्ट्रपर उसका प्रभाव बहुत काफी होगा। जैसे कि एक खाई खोदनेवाले सैनिकका काम भले ही कुछ न लगे परन्तु वही काम हजारोंके मिलकर करनेसे पलड़ा भारी हो सकता है।

"इंडिपेंडेंट" दलके धमकी-बाज लोगोंकी स्थिति

जान पड़ता है वे नेतृत्व करनेकी धमकी दे रहे हैं। किन्तु वे सफल नहीं होंगे। भारतकी मनोवृत्ति उनकी प्रणालीके विपरीत बैठती है। आपने जो-कुछ भी नृशंसता देखी है, मेरा खयाल है वह लोगोंके एक बहुत ही छोटे भागतक सीमित है।

इंग्लैंडसे सौहार्दपूर्ण समझौतेकी सम्भावना

निश्चय ही इसकी पूरी सम्भावना है। मैं इसीके लिए प्रयत्न कर रहा हूँ। लेकिन यह बहुत-कुछ अंग्रेजोंके आचरणपर निर्भर है।

अंग्रेजी प्रति (सी० डब्ल्यू० ५९९३) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य: प्रो० जॉर्ज मॉर्गेनस्टन

१. श्री स्टेनकोनोव (१८९७-१९४८): नॉर्वेके भारतीय संस्कृतिशास्त्री, पुरालेखविद और पत्रकार। शान्तिनिकेतनमें (१९२४-२५) एक अतिथि प्राध्यापक। मौन दिवसपर गांधीजीने स्टेनकोनोवके प्रक्षोंके उत्तर लिखकर दिये थे। उपशीर्षक गांधीजीकी लिखावटमें नहीं हैं।

२. स्टेनकोनोव द्वारा सूचित।