पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/२३९

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१२२. पत्र: बीरेन्द्रनाथ सेनगुप्तको

२ मार्च, १९२५

प्रिय मित्र,

मैंने इस बीच आपका पत्र बराबर अपने पास रखा है। मौलाना मुहम्मद अलीके वक्तव्यमें आपत्ति करने लायक कोई बात मुझे नहीं दिखी। क्या एक सात फुट लम्बा आदमी दूसरे पाँच फुट लम्बे आदमीसे अपनेको ऊँचाईमें बड़ा नहीं कह सकता, भले ही दूसरा व्यक्ति और सब बातोंमें उससे बढ़-चढ़कर हो? क्या मौलाना पूरी ईमानदारीसे ऐसा नहीं कह सकते कि वे संसारके तथाकथित सबसे बड़ आदमीसे भी बड़े हैं क्योंकि जहाँतक धर्मका सवाल है मौलाना ऐसे धर्मके अनुयायी हैं जो उनके विचारसे सबसे अच्छा धर्म है? मैं समझता हूँ कि मौलानाने यह फर्क बहुत ही ठीक दिखाया है।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

१२३. पत्र : फजल-ए-हुसैनको

दिल्ली

२ मार्च, १९२५

प्यारे मियाँ साहब,

आपने कृपापूर्वक मौलाना मुहम्मद अलीसे हिन्दू-मुसलमान सवालपर अपनी टिप्पणी मुझे दिखा देनेके लिए कहा था। इसलिए उन्होंने वह टिप्पणी मेरे पास भेज दी। मैंने उसे बार-बार पढ़ा। मैं पूरी तरह इसके पक्षमें हूँ कि पंजाब और

१. मुहम्मद अलीने लिखा था:

"इस्लामको माननेवाला होनेके नाते मैं यह माननेके लिए मजबूर हूँ कि इस्लाम के उसूल इस्लामके अलावा किसी भी दूसरे मजहब माननेवालोंके उसूलोंसे ऊँचे हैं। इस नजरियेसे एक पस्त और गिरे हुए मुसलमानके मजहबी उसूल भी एक गैर-मुसलमानके मजहबी उसूलोंके मुकाबिले ऊँचा दर्जा पानेके मुस्तहक हैं--भले ही वह गैर-मुसलमान कितना ही पाक और नेकचलन क्यों न हो और चाहे वह खुद महात्मा गांधी ही क्यों न हों।" देखिए खण्ड २३, परिशिष्ट १३।

२६-१४