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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बंगालमें मुसलमानोंको उनकी संख्याके अनुपातमें प्रतिनिधित्व मिले। लेकिन आपने पृथक् निर्वाचनके पक्षमें जो दलील दी है, उसे मैं समझ नहीं पाया। लगभग सभी जगह चुनावकी यह प्रणाली असन्तोषजनक सिद्ध होती दिखाई देती है। और यदि एक जातिके लिए पृथक् निर्वाचन मान लिया जाये तो फिर आप अन्य जातियों और अन्ततोगत्वा उपजातियोंको भी ऐसे ही निर्वाचनका हक माँगनेसे रोक नहीं सकेंगे। इसका अवश्यम्भावी परिणाम राष्ट्रीयताका विनाश है। मैंने जो सुझाव दिया था, क्या आपने उसपर विचार किया है?

मैं आशा करता हूँ कि आपसे में जब मिला था उसकी अपेक्षा आपकी सेहत अब बेहतर होगी। अच्छा होता कि हम दोनों फिर मिल सकते और जब-तब मिलते रह सकते।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

[पुनश्च:]

मैं फिलहाल दिल्लीमें हूँ। कल साबरमती जा रहा हूँ और वहाँसे मद्रास जाऊँगा।

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

१२४. पत्र: जफर अली खाँको

२ मार्च, १९२५

आपका पत्र मिला। मेरा खयाल है कि आप नाहक परेशान हो रहे हैं। यदि आप मेरी टिप्पणी दुबारा पढ़ें, तो उसे नुकसानदेह नहीं पायेंगे। मैं आपके पत्रपर 'यंग इंडिया' के स्तम्भोंमें चर्चा कर रहा हूँ क्योंकि उसकी विषय-वस्तु सर्वसाधारणके हितकी है। परन्तु मान लीजिये मैंने भूल की, तो क्या हमें एक-दूसरेकी राय बर्दाश्त नहीं करनी चाहिए, विशेष रूपसे जब कि वह ईमानदारीसे स्थिर की गई हो।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

[अंग्रेजीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

१. देखिए "मेरा अपराध", ५-३-१९२५।