पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 26.pdf/२४१

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१२५. पत्र: सरोजिनी नायडूको

२ मार्च, १९२५

राष्ट्रीय स्कूलोंतक को बन्द करनेका यह निर्णय आखिर किसलिए? कालेजोंको बन्द करनेकी बात तो मैं कुछ समझ सकता हूँ। क्या स्कूलोंको भी बन्द करना जरूरी है?

सस्नेह,
[अंग्रेजीसे]

तुम्हारा,

मो० क० गांधी

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई

१२६. पत्र: नरोत्तम लालजी जोशीको

२ मार्च, १९२५

मैंने आपका पत्र बहुत दिनोंसे संभालकर रख छोड़ा है। फुरसत मिलेगी तो आपका नाम दिये बिना 'नवजीवन' में उसका सार्वजनिक उपयोग भी करूँगा। यदि ऐसा करूँ तो आप मेरी टीकाको ध्यानसे पढ़ें। आशा है जल्दी ही करूँगा। आप बहुत लोभी हैं। सब बातें तुरन्त ही जान लेना चाहते हैं; भविष्यके लिए कुछ नहीं छोड़ते और श्रद्धाको भी कोई अवकाश नहीं देते। रामनाम किसीके धन्धेकी या रोजगारकी जगह नहीं ले सकता; बल्कि वह तो उसकी शुद्धिके निमित्त होता है। आप कुछ भी काम करते हुए रामनाम जप सकते हैं। इस जपका फल तो श्रद्धालु ही पा सकते है। यदि आपकी श्रद्धा अपने शिक्षकमें नहीं है तो आप उससे कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते। यदि जगह हुई तो कुछ समयके लिए ही क्यों न हो आश्रममें प्रवेश मिल जायेगा। यदि आपकी ऐसी इच्छा हो तो व्यवस्थापकको लिखें। आप गाँवमें तो बहुतसा काम कर सकते हैं, बशर्ते कि आप वहाँ शान्तचित्त होकर रह सकें और शरीरश्रम कर सकें।

मोहनदासके वन्देमातरम्

[गुजरातीसे]

महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे।

सौजन्य: नारायण देसाई