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१२७. वक्तव्यः सर्वदलीय सम्मेलन उप-समितिकी बैठकके स्थगनपर

दिल्ली

२ मार्च, १९२५

हिन्दू-मुसलमान समस्याके सम्बन्धमें सर्व-दलीय सम्मेलनकी उप-समितिकी बैठकके मुल्तवी किये जानेका कारण बतलाते हुए महात्मा गांधी और पण्डित मोतीलाल नेहरूने निम्नलिखित वक्तव्य जारी किया है:

सर्वदलीय सम्मेलनकी समिति द्वारा नियुक्त उप-समितिको बैठकमें निर्णय किया गया था कि इस व्यवस्थाके साथ कार्यवाही स्थगित की जाये कि उप-समितिके सदस्य जब बहुमतसे माँग करें तो फिर बैठक बुलाई जाये। बैठकने हमें यह अधिकार और आदेश दिया था कि आज जैसी स्थिति है हम उसका संक्षिप्त लेखा-जोखा प्रस्तुत करें। बैठकमें बहुत कम सदस्य-५३ में से १४ ही-शरीक हुए। हम दोनोंके अलावा मौलाना मुहम्मद अली, मौलाना शौकत अली, स्वामी श्रद्धानन्द, पण्डित जवाहरलाल नेहरू, डा० एस० दत्त, श्री अहमद अली, एम० एल० ए०, सलेमपुरके राजा अहमद अली खाँ, नवाब सर साहबजादा अब्दुल कयूम, श्री मुहम्मद याकूब, श्री ना० म० जोशी और श्री न० चि० केलकर थे। श्री जिन्ना एक दूसरी बैठक (स्वतन्त्र दलकी बैठक) को छोड़कर चन्द मिनटोंके लिए इस बैठकमें शरीक हुए थे।

सर्वश्री जयकर, श्रीनिवास आयंगार और जयरामदासके शरीक होनेकी असमर्थताके कारण लाला लाजपतरायने बैठक आगेके लिए मुल्तवी करनेकी माँग की थी। हम अपनी जिम्मेदारीपर बैठक मुल्तवी नहीं कर सकते थे। इसलिए हमने लाला लाजपतरायको सूचित कर दिया कि मुल्तवी करनेका प्रश्न बैठकमें पेश किया जाये। बादमें यही हुआ। लेकिन लाला लाजपतराय तथा उनके बताये सज्जनोंकी अनुपस्थितिके अलावा यों भी उपस्थिति इतनी कम थी कि कोई निर्णय नहीं लिया जा सकता था। फिर हमारी रायमें किसी निश्चित निष्कर्षपर पहुँचनेके लिए सामग्री भी नहीं थी। निकट भविष्यमें किसी निश्चित निष्कर्षपर पहुँचनेकी कोई सम्भावना भी नहीं है। इसलिए सिवा इसके कि हमने बैठक बुलानेकी माँग करनेका जो उल्लेख किया है वह माँग की जाये तो भले ही बैठक हो, अन्यथा निश्चित अवधिके भीतर सभाकी आम बैठक बुलाये जानेकी आशा हमें दिखाई नहीं देती। किसी निष्कर्षपर पहुँचने में असफल होनेसे जनतामें निराशा फैलनेकी सम्भावना है। फिर भी हम पत्रकारों और

१. पहली मार्चको। गांधीजी इस उप-समितिके अध्यक्ष थे और मोतीलाल नेहरू महामन्त्री।

२. देखिए "तार: लाजपतरायको", २३-२-१९२५ की पाद-टिप्पणी।

३.देखिए "तार: लाजपतरायको", २३-२-१९२५।