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पत्र: दाभोलकर और जेष्टरामकी पेढ़ीको

अन्य लोगोंको निराश न होनेकी सलाह देंगे। चूँकि उप-समिति किसी निष्कर्षपर नहीं पहुँच सकी है, इसी कारण व्यक्तियों और दलोंको कोई हल निकालनेके अपने प्रयत्न शिथिल नहीं कर देने चाहिए।

डा० बेसेंटकी अधीनतामें उप-समितिने जो स्वराज्य-योजना बनाई है, उसका उल्लेख करना बाकी है। उस उप-समितिके सदस्योंकी ओरसे असहमतिकी आवाजें उठ रही हैं। हमारे पास उनकी विमति-टिप्पणियाँ आ रही हैं। यह देखते हुए कि उपस्थिति बहुत कम थी और हिन्दू-मुसलमान प्रश्नके विषयमें किसी निष्कर्षपर नहीं पहुँचा जा सकता था, इस बैठकमें योजनापर विचार नहीं हो सका।

[अंग्रेजीसे]
हिन्दुस्तान टाइम्स, ४-३-१९२५

१२८. पत्र: दाभोलकर और जेष्टरामकी पेढ़ीको

साबरमती,

३ मार्च, १९२५

महोदय,

मुझे आपका...का पत्र मिला जिसमें आपके...के पत्रकी नकल संलग्न है। मुझे अभीतक वह पत्र नहीं मिला। शायद वह मेरे पिछले पतेपर दिल्ली भेज दिया गया हो।

चूँकि न्यायालयमें मामला आगे पहुँच गया है और चूँकि श्री गोदरेजके अपने मुख्तार हैं, इसलिए मैं प्रस्तुत विषयपर कुछ नहीं कहना चाहता। आपके मुताबिक और श्री गोदरेज द्वारा निर्वाचित व्यक्तिके साथमें प्रसन्नतापूर्वक पंच बननेके लिए मैं तैयार हूँ। बात केवल यह है कि उस दिशामें मेरी काम करनेकी क्षमता सीमित है। इसलिए मेरे साथी पंचको मेहरबानी करके मेरे अन्य कार्योका भी खयाल रखना होगा। मैं आपका पत्र श्री गोदरेजको भेज रहा हूँ ताकि वे जैसा चाहें कदम उठा सकें।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी मसविदे (एस० एन० १०५२७ आर०) से।

१. इस पत्रका मसविदा सर्वश्री दाभोलकर और जेष्टराम (मुख्तारोंकी एक फर्म )से प्राप्त २ मार्च, १९२५ के पत्रकी पिछली ओर तैयार किया गया था।

२. किन्तु २-३-१९२५ को दिल्लीसे लिखे हुए पत्रमें गांधीजीने लिखा था: "मैं कल साबरमती जा रहा हूँ।" देखिए "पत्र: फजल-ए-हुसैनको", २-३-१९२५।

३ व ४. साधन-सूत्रके अनुसार।