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१२९. तार: च० राजगोपालाचारीको

[४ मार्च, १९२५को या उसके पश्चात्]

शनिवारको सुबह मद्रास पहुँचकर उसी दिन वाइकोम रवाना हो जाऊँगा। अवश्य साथ चलें।

अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १०६३३) की फोटो-नकलसे।

१३०. टिप्पणियाँ---१

हिन्दू-मुस्लिम समस्या

पाठकोंको समाचारपत्रोंमें प्रकाशित वक्तव्यसे विदित हो जायेगा कि सर्वदलीय सम्मेलनकी उप-समिति उक्त जबरदस्त समस्याके बारेमें कोई भी निर्णय नहीं कर पाई है। परन्तु शायद यह ठीक ही हुआ कि उसने कोई निर्णय नहीं किया। इसके उचित समाधानके लिए उपयुक्त वातावरणका अभी तो अभाव ही है। दोनों पक्षोंमें परस्पर अविश्वास है। ऐसी परिस्थितिमें काम करनेका कोई सर्व-सामान्य आधार नहीं मिल सकता। यथासम्भव कोई भी कुछ छोड़ना नहीं चाहता; और न दोनोंमें से कोई पक्ष समाधानके लिए सचमुच चिन्तित ही दिखाई पड़ता है। फिर भी निराश हो बैठनेका कोई कारण नहीं है। दूसरोंकी नीयतपर भरोसा रखनेवाले, बिलकुल निर्भय किस्मके लोग यदि अपने विश्वासपर अडिग रहकर कोई समाधान निकालनेकी कोशिश करें तो वर्तमान असफलता ही हमारी भावी सफलताकी सीढ़ी बन जा सकती है। समाधान कोई भी हो, वह राष्ट्रीय तभी बन सकेगा जब वह सरकारपर बिलकुल ही निर्भर न हो; अर्थात् जब उसके अन्दर अपने ही पैरों चलने और आगे बढ़नेकी क्षमता होगी और जब वह अमलमें आनेके लिए सरकारकी सद्भावनाका मुखापेक्षी नहीं रहेगा।

असहायता

मुझे एक काफी लम्बा-चौड़ा तार मिला है। उसमें बतलाया गया है कि २२ तारीखकी रातको दस बजे सक्खर नगरके ऐन बीचोंबीच एक पुलिस थानेके पास ही एक बड़ी दुःसाहसपूर्ण डकैती हुई है। तारमें यह भी कहा गया है कि डाकू अभी तक पकड़े नहीं गये हैं और साहूकार लोग अपने-आपको बड़ा असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। तारका उद्देश्य तो स्पष्ट ही जनताकी सहानुभूति प्राप्त करना और संसारके

१. यह च० राजगोपालाचारी द्वारा देवदास गांधीको ४ मार्च, १९२५ को भेजे गये निम्न तारके उत्तरमें था: "बापूके साथ जानेकी कोशिश करना; उनके मद्रास पहुँचनेकी तारीख तुरन्त सूचित करना।"