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टिप्पणियाँ---१

इस सबसे अधिक व्यय-साध्य प्रशासनकी इस असफलताको जनताके सामने लाना है कि वह लोगोंके जान-मालकी रक्षा करनेका अपना मामूली-सा कर्त्तव्य भी पूरा नहीं कर पाता। जहाँतक सहानुभूतिका सम्बन्ध है जनताकी पूरी सहानुभूति सक्खरके नागरिकोंके साथ है। सरकारकी आलोचना भी जितनी चाहे की जा सकती है। परन्तु अधिक संगत प्रश्न तो यह है कि डकैतोंके हमलेके वक्त साहूकार क्या कर रहे थे। तारसे तो यह लगता है कि उन्होंने पर्याप्त सफलताके साथ आत्म-रक्षाका प्रयास किया था। परन्तु पैसेवालोंके पास आत्म-रक्षाकी शक्ति आखिरकार बहुत नहीं होती। इस डकैतीको लेकर ऐसी असहाय पुकार सुनकर मैं तो सरकारकी असमर्थताकी अपेक्षा लुटे हुए लोगोंकी कमजोरीकी बात ही अधिक सोचता हूँ। कानून आत्म-रक्षाका अधिकार देता है। मानवीय गरिमाका भी यही तकाजा है कि आत्म-रक्षाका साहस हमारे अन्दर होना चाहिए। यदि सभी लोग हर जगह अपनी सम्पत्ति और अपने सम्मानकी रक्षाके लिए सरकारका मुँह ताकना छोड़कर अपने पैरोंपर खड़े होना सीख लें तो वह स्वराज्यकी एक अच्छी तालीम होगी।

सिलहटकी पुकार

सिलहट जिले में दौरा करनेके लिए निमन्त्रण देते हुए उसके समर्थनमें नीचे लिखी मार्मिक अपील की गई है:

यद्यपि हमारी आजकी हालतको देखते हुए आपको तकलीफ देना ठीक नहीं मालूम होता; लेकिन हमारा पिछला इतिहास तो आपकी सहानुभूति प्राप्त किये बिना नहीं रह सकता। हमारी कुछ अजीब स्थिति है। राजनीतिक दृष्टिसे तो हम लोग असम सरकारकी हुकूमतमें हैं लेकिन भाषामें, सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक, सभी बातोंमें हमारा बंगालसे ही घनिष्ठ और अभिन्न सम्बन्ध है। हमारी जिला-कमेटी बंगाल प्रान्तीय कांग्रेस कमेटीके मातहत है।

जब असहयोग जोरोंपर था उन दिनों पंजाबके बाद असम प्रान्तको हो, जिसमें हमारा जिला भी शामिल है, नौकरशाहीके क्रोधका सबसे बड़ा शिकार बनना पड़ा था।

हिन्दुस्तानके दूसरे हिस्सोंमें यह जिला चाय बागानके मजदूरोंके बड़ी संख्यामें बाहर चले जाने, मेज भागमें 'कुरान' के फाड़े जाने और अन्तमें कानाईघाटकी दुर्घटनाके कारण मशहूर हुआ।

'कानून और व्यवस्था' के नामपर इस जिलेके करीब २६ लाख निवासियोंसे करीब २ लाख रुपये से भी अधिक महसूल जुर्मानके तौरपर वसूल किया गया था।

लगभग २०० राष्ट्रीय कार्यकर्ताओंको जेलमें डाल दिया गया था।

इस निष्ठुर दमनसे कांग्रेसके कार्यको बड़ी हानि पहुँची है। बहुतसे लोग तो अपने काम-धन्धोंको सँभालने के लिए वापिस चले गये और इसीलिए आज हमें कार्यकर्ताओंकी संख्यामें बड़ी कमी दिखाई देती है।