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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अमरीकी पुस्तकके प्रति यह खुलासा देना मेरा कर्तव्य था। और खुशीकी बात है कि पत्र-लेखकने मुझे इसकी याद दिलाकर उसके ऋणको अदा करनेका अवसर दिया।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ५-३-१९२५

१३२. मेरा अपराध

मौ० जफर अलीखाँने पंजाब खिलाफत समितिके सभापतिकी हैसियतसे एक खत मुझे भेजा है। मैं उसे यहाँ खुशीके साथ दे रहा हूँ:

इसी ता० २६ के 'यंग इंडिया' में काबुलकी संगसारीके विषयमें आपके प्रकाशित वक्तव्यको पढ़कर मुझे बड़ा दुःख और आश्चर्य हुआ। आप फरमाते हैं कि 'कुरान' में इसका उल्लेख होने मात्रसे इस विशेष दण्डका समर्थन नहीं किया जा सकता।' आपने यह भी कहा कि 'प्रत्येक धर्मके प्रत्येक नियमको विवेकके इस युगमें पहले विवेक और व्यापक न्यायकी अचूक कसौटीपर कसना होगा तभी उसपर संसारकी स्वीकृति माँगी जा सकती है।' अन्तमें आप कहते हैं कि 'किसी भूलका समर्थन संसारके समस्त धर्मग्नन्थोंमें भी किया गया हो तो भी वह इस नियमसे मुक्त नहीं हो सकती।'

मैंने हमेशा आपकी महत्ताके आगे सर झुकाया है और आपको बराबर ही उन थोड़े-से आदमियोंमें गिनता आ रहा हूँ जो आधुनिक इतिहासका निर्माण कर रहे हैं; पर अगर मैं यह बात आपपर रोशन न करूँ कि आपने यह कहकर कि 'कुरान'को यह अधिकार नहीं है कि वह अपने अनुयायियों के जीवनको अपने ही ढंगसे नियन्त्रित करे, अपने लाखों मुसलमान प्रशंसकोंके दिलमें यह भावना पैदा कर दी है कि आप उनकी रहनुमाई करने लायक नहीं है, तो मैं एक मुसलमानकी हैसियतसे अपने कर्तव्यसे च्युत हो जाऊँगा।

आपको इस बातपर अपनी राय जाहिर करनेकी छूट तो पूरी-पूरी है कि धर्मसे च्युत लोगोंको शरीयत संगसारीकी सजा देती है या नहीं। परन्तु यह मानना कि यदि 'कुरान' भी ऐसी सजाकी ताईद करती हो तो वह गलती है और इस रूपमें मलामतके काबिल है, इस किस्मकी विचारसरणी है जो मुसलमानोंको जँच ही नहीं सकती।

गलती आखिरकार एक सापेक्ष चीज है और मुसलमानोंके यहाँ उसका अपना अलग अर्थ है। उनके नजदीक 'कुरान' एक अटल कानून है जो क्षुद्र मानवजातिकी सदा परिवर्तनशील व्यवहार नीति और समय-नीतिकी सीमासे

१. विलियम मैकिटापर साल्टर लिखित पुस्तक 'एथिकल रिलिजन'।