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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

समीपवर्ती ग्रामोंकी क्षमताको देखते हुए कहा जा सकता है कि काफी प्रचार नहीं हुआ है। हाँ, जहाँ आसपास कुछ काम न हुआ हो वहाँ थोड़ा काम भी बहुत दीखता है, इस न्यायसे यह माना जा सकता है कि बढवानने काफी काम किया है। परन्तु हम थोड़ेसे सन्तोष नहीं कर सकते। सवाल तो यह है कि बढवानने शक्ति-भर योग दिया है या नहीं? इस नगरकी शक्ति बहुत बड़ी है--यह मैंने देख लिया है। यह उद्योग-शाला भाई शिवलालका स्मारक है, चरखा-प्रचार उनके जीवनका मुख्य ध्येय था। मुझे बतलाया गया था कि उन्होंने चरखके महत्त्वको भली प्रकार जान लिया था। मैं चाहता हूँ कि बढवानमें चरखसे सम्बन्धित सभी कलाओंका विकास हो।

तीन-स्रोत

इन दिनों काठियावाड़में खादीके तीन स्रोत हैं--बढवान, मढ़डा और अमरेली। कार्यवाहक समितिने और अधिक खादी तैयार करनेकी योजना बनाई है। पर ये तीनों केन्द्र अपने अनुभवोंका आदान-प्रदान करते हए एक-दूसरेसे स्वस्थ स्पर्धा करें यह वांछनीय है। तीनों केन्द्र खादीकी उत्पत्ति बहुत बढ़ा सकते हैं। राज्योंकी ओरसे खादीको प्रोत्साहन मिलनेकी पूर्ण आशा है। इसलिए वे बिना रुके खादीका उत्पादन करते रहें। लोगोंमें खादी-प्रचार लगातार करते रहनके लिए उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। यह कार्य मुख्यत: कार्यवाहक समितिका है। मैं तो यह चाहता हूँ कि कार्यवाहक समिति तमाम खादी लागतके दामोंपर खरीद ले और उसका संग्रह करे। समितिको खादीका इजारा ले लेना चाहिए। अमेरिकामें जो बात धनवान लोग अपना धन बढ़ानेके लिए करते हैं वह हम यहाँ जनहितके लिए करें। किसी एक चीजके व्यापारको अपने हाथमें लेनेके लिए वे उसे साराका-सारा खरीद लेते है और फिर उसे मनमाने दामपर बेचते हैं। हम लोग हितकी भावनासे खादीके सम्बन्धमें ऐसा ही क्यों न करें? अमेरिकामें वे ऐसा दाम बढ़ानेके लिए करते हैं, हम दाम घटानेके लिए करें। खादीके उत्पादनका खर्च सब जगह एक समान नहीं होता। क्योंकि कताई आदिकी दरोंमें थोड़ा-बहुत फर्क रहा ही करता है। फिर हम तो कपास माँग रहे हैं। यह खादीके लिए "बाउंटी"--प्रोत्साहन--के रूपमें है। इससे समिति घाटेपर भी खादी बेच सकती है। पर खानगी संस्थाएँ ऐसा नहीं कर सकतीं। समिति खादी बनानसे सम्बन्ध रखनेवाली सब चीजोंके दाम और दानमें मिली कपासका दाम जोड़कर जो भाव पड़े उसपर खादी बेचे। खानगी संस्थाओंसे खादी किस दरपर ली जाये, इसका निर्णय उनसे मिलकर किया जा सकता है। इतनी बातें तो ध्यानमें रखी ही जानी चाहिए।

१. स्थानीय रूपसे जितना माल बिक सके, बेच दिया जाये। जैसे कि बढवानमें तैयार की गई खादीके कुछ भागकी बिक्री बढवानमें हो जानी चाहिए। इस सम्बन्धमें भिन्न-भिन्न संस्थाओंको अपने-अपने स्थानोंपर अवश्य प्रयत्न करना चाहिए।

२. संस्थाओंको सूतकी किस्म और अच्छी बनाने, उसे बटदार और महीन बनानेकी ओर ध्यान देना चाहिए।